गीतकार राजेंद्र गौतम ने कहा, अमूल्य हैं ठाकुर प्रसाद सिंह के गीत, साहित्य अकादेमी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए कई विद्वान
Edit By Kritarth Sardana: नई दिल्ली। 27 जनवरी 2024 ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों में रंगो से जुड़े विश्लेषणों की बहुलता हम सबको आश्चर्यचकित करती है। उनके गीत अनुभवजनित भाषा के परिचायक और अमूल्य हैं। फिर उनके गीतों में सांस्कृतिक संदर्भ के साथ ही उनपर मंडरा रहे संकटों की बात भी है। कभी कभी तो लगता है जैसे उनके गीत अनाम, अज्ञात संथाल युवती के स्वकथन और संवाद हैं।‘’
उपरोक्त विचार जाने माने गीतकार राजेंद्र गौतम ने प्रसिद्द गीतकार, लेखक ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर ‘साहित्य मंच’ कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन साहित्य अकादेमी ने बुधवार को नयी दिल्ली, मंडी हाउस स्थित अपने रवींद्र भवन परिसर में किया।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेंद्र गौतम ने की। जबकि वक्ता राधेश्याम बंधु, जगदीश व्योम और रमा सिंह ने भी कार्यक्रम में अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए।
जगदीश व्योम का कहना था-‘’उनके गीतों में जहां लोकजीवन की सकारात्मकता को महसूस किया जा सकता है। वहाँ उनके गीतों में समूचे लोक के साथ ही एक व्यापक दृष्टिकोण भी है जो आदिवासी जीवन की संवेदना को सहजता से पकड़ता है।‘’
उधर राधेश्याम बंधु ने ठाकुर प्रसाद सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन के अभावों के त्रासद सत्य को समाहित किया गया है। उन्होंने अज्ञेय के हवाले से ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों की उत्कृष्टता का उदाहरण भी दिया।
जबकि रमासिंह ने कहा कि 21 वर्ष की अवस्था में लिखा उनका ‘महामानव’ प्रबंध-काव्य अपनी सरल और सहज भाषा में गाँधीजी के समूचे जीवन और उनके संघर्षों को प्रस्तुत करता है। उन्होंने ठाकुर प्रसाद सिंह के काव्य संग्रह ‘हारी हुई लड़ाई लड़ते हुए’ पर भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस संग्रह की कविताएँ इतिहास, पुराण के साथ ही मानवीय संबंधों की शब्द-चित्र जैसी कविताएँ हैं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने उनके उपन्यासों ‘कुब्जा सुंदरी’ एवं ‘सात घरों का गाँव’ के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी की और बताया कि उनके ये उपन्यास आदिवासी समुदायों के जीवन का आख्यान हैं।