डॉ हर्षवर्धन ने किया प्रितपाल कौर की पुस्तक ‘नील’ का विमोचन, समारोह में जुटे कई विशिष्ट लेखक, पत्रकार

कृतार्थ सरदाना। दिल्ली में यूं आए दिन किसी न किसी पुस्तक के विमोचन समारोह होते रहते हैं। लेकिन उनमें बहुत से ऐसे समारोह मात्र औपचारिक बनकर रह जाते हैं। लेकिन हाल ही में राजधानी में प्रितपाल कौर (Pritpal Kaur) की एक ऐसी पुस्तक ‘नील’ (Neel Novel) का विमोचन हुआ, जहां अनेक लेखक, पत्रकार तो शामिल हुए ही। साथ ही उनमें से कुछ ने पुस्तक को लेकर हृदय पटल से अपने उदगार भी व्यक्त किए। उपस्थित जन समूह ने भी पुस्तक की चर्चा को धैर्य और उत्सुकता के साथ सुना। तो पूरा वातावरण ‘नीलमय’ हो गया।
पुस्तक का विमोचन पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता डॉ हर्षवर्धन (Dr Harsh Vardhan) ने किया। जबकि पुलिस में विभिन्न उच्च पदों पर रहे आमोद कंठ (Amod K Kanth), वरिष्ठ पत्रकार, संपादक और जाने माने समीक्षक प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana), हिंदुस्तान दैनिक की कार्यकारी संपादक और प्रसिद्द लेखिका जयंती रंगनाथन (Jayanti Rangnathan) एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक सुरेश शर्मा ने पुस्तक को लेकर समारोह में अपने विचार प्रकट किए।
बता दें देश के प्रतिष्ठित प्रकाशक भारत पुस्तक भंडार से प्रकाशित ‘नील’ (Neel Novel) एक ऐसा उपन्यास है जिसकी कहानी कोराना के भयावह दौर की है।
डॉ हर्षवर्धन भी कोराना काल के दिनों देश के स्वास्थ मंत्री थे। फिर वह स्वयं एक लेखक भी हैं। दिल्ली सरकार में स्वास्थ मंत्री रहते हुए उन्होंने पोलियो के उन्मूलन के लिए तो महान कार्य किए ही। साथ ही तब डॉ हर्षवर्धन ने इस सब पर एक पुस्तक ‘ए टेल ऑफ टू ड्रॉप्स’ (A Tale of Two Drops) भी लिखी। जिसका विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने किया था। इस पुस्तक की चर्चा विश्वभर में हुई।
‘नील’ का कथानक दिलचस्प होने के साथ लीक से हटकर -हर्षवर्धन
इधर दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित सीएसओआई में आयोजित पुस्तक ‘नील’ के विमोचन पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा, मैं किसी भी पुस्तक का विमोचन उसे बिना पढ़े नहीं करता। इसलिए मैंने ‘नील’ को भी पूरा पढ़ा। मुझे बताते हुए हर्ष है कि इस पुस्तक को मैंने जब पढ़ना शुरू किया तो एक ही बार में अंत तक पढ़ गया। इसका कथानक दिलचस्प होने के साथ लीक से हटकर है। इसे सभी को पढ़ना चाहिए ‘’
‘नील‘ का चरित्र पुस्तक को विशिष्ट बनाता है- आमोद कंठ
उधर अमोद कंठ (Amod K Kanth) जो उच्च पुलिस अधिकारी होने के साथ बरसों अपनी संस्था ‘प्रयास’ के माध्यम से बाल कल्याण में जुटे रहे। आज भी ‘प्रयास’ से बच्चों के लिए अनेक सराहनीय कार्य कर रहे हैं। कंठ कहते हैं, पुस्तक इतनी दिलचस्प है कि इसके 70 पृष्ठ एक बैठक में पढ़ गया। प्रितपाल को मैं बरसों से जानता हूं। वह हिन्दी और अँग्रेजी दोनों में अच्छा लेखन कर रही हैं। उनकी कुछ और पुस्तकें भी मैंने पढ़ी हैं। इस पुस्तक में नील का चरित्र उन्होंने ऐसा गढ़ा है जो पुस्तक को विशिष्ट बनाता है।
एक अच्छा उपन्यास है ‘नील‘ – जयंती
जयंती रंगनाथन (Jayanti Rangnathan) पिछले कुछ बरसों से अपनी लिखी पुस्तकों से लगातार सुर्खियों में हैं। शैडो, मैमराजी, मेरी मम्मी की लव स्टोरी, औरतें रोती नहीं और एक लड़की दस मुखौटे में उन्होंने महिलाओं की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया है। जयंती कहती हैं, यह एक अच्छा उपन्यास है। ‘नील’ में कोराना के दौर को दिखाया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि कोराना को उतने भयावह रूप में नहीं दिखाया जैसा वह था। यह इसलिए सुखद है कि मैं स्वयं नहीं चाहती कि उस भयावह दौर को और याद करूं। मैं उस त्रासदी को भूल जाना चाहती हूं।
नील के चरित्र से बुना है अनुपम ताना बाना- प्रदीप सरदाना
उधर लेखक, कवि, संपादक और प्रख्यात फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने इस मौके पर कहा, प्रितपाल ने नील के चरित्र से जो ताना बाना बुना है वह अनुपम है। उपन्यास पढ़ते हुए बार बार विचार तो आता है कि यह नील कौन है। लेकिन लेखिका ने उसके रहस्य को अंत तक बरकरार रखा। फिर प्रितपाल (Pritpal Kaur) ने अपने इस उपन्यास की भूमिका कुछ ऐसे लिखी है जो कोराना के दौर के साथ पुस्तक के सार को भी कहीं न कहीं व्यक्त कर देती है। बनारस के घाट पर आरती से कुछ समय पहले तपती सीढ़ियों पर पैर जलना, वहाँ बैठना मुश्किल हो जाना। लेकिन शाम होते ही आरती के दौरान वह सब कष्ट दूर हो जाते हैं। तब वह पीढ़ा याद नहीं रहती। कोरोना में भी पहले कितने कष्ट आए। लेकिन अब हम उनको भूल चुके हैं।
प्रितपाल की पुस्तकें छपने से पहले पढ़ता रहा हूँ लेकिन….सुरेश शर्मा
प्रसिद्द रंगकर्मी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक रहे सुरेश शर्मा (Suresh Sharma), लेखिका प्रितपाल (Pritpal Kaur) के पति भी हैं। सुरेश शर्मा कहते हैं, मैं प्रितपाल की पुस्तकों को प्रकाशित होने से पहले ही पढ़ता रहा हूं। लेकिन ‘नील’ उनकी ऐसी पुस्तक है जिसे मैंने प्रकाशित होने के बाद पढ़ा। ‘नील’ (Neel) कोविड के दौर को तो दर्शाने के साथ एक और भी बहुत कुछ व्यक्त करती है।
उपन्यास के साथ कहानी, कवितायें भी लिखती रही हैं प्रितपाल
प्रितपाल (Pritpal Kaur) जहां उपन्यास लिखती हैं। वहाँ कहानी, कविता और यात्रा संस्मरण भी लिखती रही हैं। जिनमें 1984 के सिख विरोधी दंगों पर उनका उयान्यास ‘साल 84’ तो काफी सुर्खियों में रहा। साथ ही ‘हाफ मून’, ‘ठग लाइफ’, ‘राहबाज’ और ‘इश्क फरामोश’ जैसे इनके उपन्यास भी पसंद किए गए।
‘जिस लाहोर वेख लिया’ उनका चर्चित यात्रा संस्मरण है। साथ ही उनका एक कविता संग्रह ‘अफसाना लिख रही हूँ’ और तीन कहानी संग्रह ‘लेडीज आइलैंड’,‘मर्दानी आँख’ और ‘लोक नगर की इक्कतीस कहानियाँ’ भी प्रकाशित हो चुके हैं।
मेरे पूर्व उपन्यासों से अलग है ‘नील’ –प्रितपाल
प्रितपाल (Pritpal Kaur) बताती हैं-‘नील’ को लिखने का विचार बनारस में गंगा आरती के दौरान आया था। हालांकि ‘नील’ को लिखने में डेढ़ साल लग गया। ‘नील’ की कथा वस्तु मेरे सभी पूर्व उपन्यासों से अलग है। ‘साल 84’ बहुत पसंद किया गया। जबकि उसकी कहानी सिर्फ तीन दिन की थी। लेकिन ‘नील’ में मैंने लंबे समय को दिखाया है।
क्या ‘नील’ (Neel Novel) के पात्रों में से कोई पात्र कर्नल, रोहिणी, बहादुर, सुनीता, चित्रेश या डॉ भाटिया असल जिंदगी से भी है? दूसरा इसकी पृष्ठभूमि आपने देहरादून के आसपास रखी इसका कोई खास कारण ? यह पूछने पर प्रितपाल (Pritpal Kaur) बताती हैं- कोई पात्र पूरी तरह असल ज़िंदगी से नहीं है। लेकिन कुछ प्रसंग, कुछ असली घटनाओं से प्रेरित हैं। देहरादून की पृष्ठभूमि मैंने इसलिए रखी क्योंकि वहाँ हमारी बेटी पढ़ती थी। इस सिलसिले में मेरा भी वहाँ जाना होता तो वहाँ की वादियाँ मुझे बहुत अच्छी लगीं।”
कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए समारोह में
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर (Ravi Parashar) ने किया। पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन ‘वूमेन जर्नलिस्ट वेलफेयर ट्रस्ट’ और प्रकाशक ‘भारत पुस्तक भंडार’ ने मिलकर किया। समारोह में जहां ट्रस्ट की पदाधिकारी प्रज्ञा कौशिक, पल्लवी घोष, विचित्रा शर्मा मौजूद रहीं। वहां जाने माने साहित्यकार डॉ लालित्य ललित, अरुणा सबरवाल, नीलिमा शर्मा और पुष्पा सिंह विसेन सहित और भी कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
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