आज भी कायम है आकाशवाणी का दबदबा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तीनों पुरस्कार आकाशवाणी से जुड़े व्यक्तियों को

टेलीविजन के आते ही रेडियो के अस्तित्व पर सवाल उठने आरंभ हो गए थे। माना जा रहा था कि आकाशवाणी की आवाज अब हवाओं में ही तैरती रह जाएगी। टेलीविजन के अनेक चैनल्स के बाद तो यह तय मान लिया था कि अब आकाशवाणी खत्म है और सोशल मीडिया आ जाने के बाद तो लोगों ने गया कि रेडियो अब कहीं नहीं टिक पाएगा। मगर ये सारी संभावनाएं उल्ट साबित हुई।

बड़ी आपदा आने पर रेडियो रहता है मुस्तैद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 में जब जनता तक मन की बात पहुंचानी चाही तो रेडियो को ही अपना माध्यम चुना और आज तक यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक चल रहा है। देश पर जब-जब कोई बड़ी आपदा आती है, रेडियो सबसे पहले वहां मुस्तैद मिलता है।

सन् 1999 का भारत-पाक युद्ध हो, 2001 में भुज (गुजरात) में आया भूकंप हो या बिहार में 2008 और 2013 में आई भंयकर बाढ़ हो, रेडियो ने सबसे पहले पहुंचकर हालात का वास्तविक ब्यौरा जनता तक पहुंचाया। वैसे भी ऐसे हालात में जन सम्पर्क के सारे सांथन अपना नैटवर्क को देते हैं। आकाशवाणी एक डूबते व्यक्ति तक को भी बचाने में मदद करता है।

हिन्दी अकादमी के पुरस्कारों में आकाशवाणी ने किया कमाल

आकाशवाणी की इन्हीं विशेषताओं और इसके कर्मियों की बेहतर कौशसीय और साहसिक सेवाओं के कारण हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार के अपने तीन साल के एक साथ घोषित पुरस्कारों में इलैक्ट्रोनिक मीडिया के दो पुरस्कार आकाशवाणी के खाते में आए हैं।

 

वर्ष 2023-24 के लिए रामअवतार बैरवा को मिला पुरस्कार

लक्ष्मी शंकर वाजपेई को 2022-23 के लिए और रामअवतार बैरवा (Ramavtar Bairwa) को 2023-24 के लिए चुना है। 2024-25 का पुरस्कार ‘आज तक’ चैनल के खाते में गया है। हालांकि ‘आज तक’ के सईद अंसारी (Sayeed Ansari) भी एक समय ‘आकाशवाणी’ में ही कार्य करते थे।

लक्ष्मी शंकर वाजपेई सन् 2015 में आकाशवाणी से अतिरिक्त महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। रामअवतार बैरवा अभी सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। इलैक्ट्रोनिक मीडिया के इतने साधनों और चैनल्स के आकाशवाणी का पुरस्कार जीतना इसके लोक प्रसारक हित को पुष्ट करता है ।

यह भी पढ़ें- साहित्यकार नीरजा माधव को राष्ट्रीय मैथिली शरण गुप्त सम्मान

Related Articles

Back to top button