Raj Kapoor जन्मशताब्दी व्याख्यान में प्रख्यात फिल्म समीक्षक Pradeep Sardana ने अपने विवेचन और संस्मरणों से सभी को किया मंत्रमुग्ध

नयी दिल्ली। महान फ़िल्मकार राज कपूर (Raj Kapoor) ने सिनेमा को जो योगदान दिया उसे दुनिया जानती है। लेकिन राज कपूर (Raj Kapoor) का रंगमंच से भी गहरा नाता रहा, नाट्य जगत के लिए भी उन्होंने बहुत कुछ किया। राज कपूर (Raj Kapoor) की जड़ों में रंगमंच की ही शक्ति थी, जिसने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। उन्हीं राज कपूर (Raj Kapoor) ने 37 बरस पहले मुझसे बातें करते-करते, जब सदा के लिए आँखें मूँद लीं थीं तो मैं अवाक रह गया था।
उपरोक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार और विख्यात फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने शुक्रवार शाम को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) में आयोजित ‘राज कपूर जन्म शताब्दी’ (Raj Kapoor Birth Centenary) व्याख्यान में व्यक्त किए। जहां इन दिनों विश्व के सबसे बड़े नाट्य उत्सव ‘भारत रंग महोत्सव’ (Bharat Rang Mahotsav) का आयोजन भी चल रहा है।
प्रदीप सरदाना के संस्मरण सुन सभी हुए मंत्रमुग्ध
प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने आगे बताया “राज कपूर (Raj Kapoor) के साथ अपने बरसों के अनुभव और संस्मरण सुनाते हुए प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने महान फ़िल्मकार को लेकर ऐसी बहुत सी बातें साझा कीं, जिन्हें सुन सभी मंत्रमुग्ध हो गए। श्री सरदाना (Pradeep Sardana) ने कहा-‘’राज कपूर (Raj Kapoor) ने 5 वर्ष की उम्र में अपना पहला नाटक ‘द टॉय कार्ट’ (The Toy Cart) किया था।”
जब राज कपूर ने नाटक में प्रकाश और संगीत व्यवस्था संभाली
फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने कहा “बाद में जब उनके पिता पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) ने 1944 में अपने ‘पृथ्वी थिएटर’ (Prithvi Theatre) की शुरुआत की तो पृथ्वी के पहले नाटक ‘शकुंतला’ की सेट डिजायन से प्रकाश और संगीत व्यवस्था का जिम्मा राज कपूर (Raj Kapoor) ने संभाला।”
रामू की भूमिका को बनाया लोकप्रिय
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana Journalist) ने कहा “साथ ही राज कपूर (Raj Kapoor) ने नाटक ‘दीवार’ में तो रामू की ऐसी भूमिका की, जिसके बाद फिल्मों तक में नौकर की भूमिका करने वाले चरित्र का नाम रामू या रामू काका हो गया। राज कपूर (Raj Kapoor) का यह नाट्य जगत से लगाव ही था कि 1948 में जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘आग’ (Aag) बनाई तो उसकी कहानी भी नाट्य जगत से जुड़ी थी।”
ग्रेट शोमैन आजतक कोई और नहीं हुआ
प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने यह भी कहा कि “राज कपूर (Raj Kapoor) ने अपनी ‘आवारा’ फिल्म से अपने नाम के साथ भारत के नाम को भी दुनिया में बुलंद किया। रूस, ताशकंद, ईरान और चीन जैसे कितने ही देशों में आज भी राज कपूर (Raj Kapoor) का जादू बरकरार है। राज कपूर (Raj Kapoor) से पहले और उनके बाद कितने ही अच्छे और दिग्गज फ़िल्मकार देश में आए। लेकिन उन जैसा ग्रेट शोमैन (Great Showman) आजतक कोई और नहीं हुआ।”
राज कपूर के अंतिम समय में प्रदीप सरदाना मौजूद रहे
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) ने कहा “यह संयोग था या उनसे पूर्व जन्म का कोई रिश्ता 1988 में राष्ट्रपति से फाल्के सम्मान लेने से पूर्व ही राज कपूर (Raj Kapoor) को जब अस्थमा का भयावह दौरा पड़ा। तब मैं ही उन्हें राष्ट्रपति भवन की एंबुलेंस से एम्स लेकर गया। उनकी अंतिम चेतनावस्था में अस्पताल में उनकी पत्नी और मैं ही उनके साथ थे। जहां मुझसे बात करते हुए ही वह कौमा में चले गए थे।‘’
प्रदीप सरदाना अपने में सिनेमा के 100 बरस के दस्तावेज़ समेटे हुए हैं
इस व्याख्यान में रंगमंच और सिनेमाई दुनिया के कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद रहे। समारोह में एनएसडी के पूर्व निदेशक और वर्तमान में ‘गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी’ के निदेशक प्रो॰ दिनेश खन्ना (Professor Dinesh Khanna) ने प्रदीप सरदाना (Pradeep Sardana) का स्वागत करते हुए कहा-‘’आज देश में सिनेमा के अच्छे समीक्षक और ज्ञाता बहुत कम रह गए हैं। लेकिन प्रदीप सरदाना जी (Pradeep Sardana) अपने में सिनेमा का 100 बरस के दस्तावेज़ समेटे हुए हैं। उनकी स्मृतियों में ऐसे हजारों संस्मरण हैं जिन्हें घंटों दिलचस्पी के साथ सुना जा सकता है।‘’