Ramesh Talwar: सिनेमा और रंगमंच को समर्पित रमेश तलवार की बात ही कुछ और है
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- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
हाल ही में मुंबई के प्रसिद्द ‘पृथ्वी थिएटर’ (Prithvi Theatre) में एक ऐसे नाटक ‘भूखे भजन न होये गोपाला’ का मंचन किया गया, जो 1966 में लिखा गया था। लेकिन आज भी यह नाटक एक दम प्रासंगिक है। जबकि इस नाटक का मंचन 46 साल बाद हुआ। फिर भी इसे देखने के लिए दर्शक उमड़ पड़े। इस नाटक को लिखा था सागर सरहदी ने और अब इसका निर्देशन किया बहुमुखी अनुपम प्रतिभा के धनी रमेश तलवार (Ramesh Talwar) ने।
रंगमंच के साथ सिनेमा और टीवी में दिलचस्पी रखने वालों के लिए रमेश तलवार (Ramesh Talwar) का नाम बहुत मायने रखता हैं। 1950 के दशक से रंगमंच और सिनेमा को समर्पित रमेश तलवार (Ramesh Talwar) आज भी जिस तरह रंगमंच के लिए दिल-ओ-जान से जुटे हैं, उसे देख नयी और पुरानी दोनों पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सकती है।
नाटक ‘सलमा’ से की अपनी रंग यात्रा आरंभ
पिछले सप्ताह रमेश तलवार (Ramesh Talwar) से मुंबई में उनके पाली हिल बांद्रा स्थित निवास पर मुलाक़ात हुई तो कई नयी पुरानी बातों का सिलसिला चल निकला। बाल कलाकार के रूप में ‘धूल का फूल’, ‘लव इन शिमला’ और ‘फूल और कलियाँ’ जैसी फिल्में कर चुके तलवार (Ramesh Talwar) ने, 1957 में दिल्ली के रामलीला मैदान में मंचित नाटक ‘सलमा’ Salma) से अपनी रंग यात्रा आरंभ की थी। उसके बाद तलवार (Ramesh Talwar) ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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‘भूखे भजन न होये गोपाला’ ने 46 बरस बाद भी रंग जमाया
सन 1966 में जब रमेश तलवार (Ramesh Talwar) ने नाटक ‘भूखे भजन न होये गोपाला’ में काम किया तब नहीं जानते थे कि यह नाटक धूम मचा देगा। तब इस नाटक ने महाराष्ट्र राज्य का सर्वश्रेष्ठ नाटक का पुरस्कार तो जीता ही। साथ ही तब यह इतना लोकप्रिय हुआ कि उसकी गूंज आज तक है। बड़ी बात यह है कि उस दौर में इस नाटक में कादर खान, सत्येन कप्पू और फारुख शेख जैसे अभिनेता भी काम करते रहे।
मुंबई में जब 1978 में जुहू में शशि कपूर (Shashi Kapoor) ने ‘पृथ्वी थिएटर’ (Prithvi Theatre) के भवन का निर्माण किया तब भी ‘भूखे भजन न होये गोपाला’ नाटक (Bhukhe Bhajan Na Hoi Gopala Play) का मंचन किया गया। लेकिन उसके बाद अब यह पूरे 46 बरस बाद फिर से मंचित किया गया, वह भी उसी पृथ्वी थिएटर (Prithvi Theatre) में।
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दो नाटकों का 50 बरसों से हो रहा है मंचन
रमेश तलवार (Ramesh Talwar) बताते हैं-‘’यह नाटक चाहे इतने लंबे अंतराल द्वारा किया गया। लेकिन मेरे दो नाटक ऐसे हैं जो 50 बरसों से लगातार मंचित किए जा रहे हैं। जिनमें एक है-‘आखिरी शमा’ और दूसरा है –‘शतरंज के मोहरे’। ‘आखिरी शमा’ लाल किले के दीवान-ए-आम में पहली बार 15 फरवरी 1969 को, मिर्जा गालिब के निधन के 100 साल होने पर पहली बार हुआ था। तब बलराज साहनी इसमें गालिब बने थे। अब इसमें गालिब का किरदार अभिनेता कंवलजीत करते हैं। मैं भी इसमें तभी से अभिनय कर रहा हूँ। अब कई बरसों से इसका निर्देशन भी मैं करता हूँ। ऐसे ही ‘शतरज के मोहरे’ भी मैं 1971 से कर रहा हूँ। इन दोनों नाटक के दुनियाभर में असंख्य शो हो चुके हैं।‘’
यश चोपड़ा के मुख्य सहायक निर्देशक के साथ ‘नूरी’ फिल्म के सह निर्माता भी रहे रमेश तलवार
रमेश तलवार (Ramesh Talwar) ‘इप्टा’ के माध्यम से नाटक तो बरसों से कर ही रहे हैं। साथ ही सिनेमा और टीवी में भी सक्रिय रहे। वह बरसों यश चोपड़ा के साथ उनकी दाग, जोशीला, दीवार, कभी कभी, त्रिशूल और काला पत्थर जैसी फिल्मों में मुख्य सहायक निर्देशक रहे। वहीं फिल्म ‘नूरी’ के सह निर्माता होने के साथ इस फिल्म के कर्णधार भी वही हैं।
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6 फिल्मों के निर्देशन के साथ कई बड़े कलाकारों के साथ कर चुके हैं काम
इनके अतिरिक्त रमेश तलवार (Ramesh Talwar) ने 6 फिल्मों का निर्देशन भी किया। अपनी निर्देशित दूसरा आदमी, बसेरा, सवाल, दुनिया, ज़माना और साहिबान जैसी फिल्मों में तलवार ने दिलीप कुमार, देव आनंद, अशोक कुमार, संजीव कुमार, राजेश खन्ना, शशि कपूर, ऋषि कपूर, वहीदा रेहमान, रेखा, राखी, नीतू सिंह और पूनम ढिल्लन जैसे बड़े कलाकारों को निर्देशित कर चुके हैं।
रमेश तलवार (Ramesh Talwar) गत 27 सितंबर को 80 बरस के हो गए हैं। लेकिन उनका काम के प्रति समर्पण और उत्साह अभी भी कम नहीं हुआ। साथ ही इतनी उपलब्धियों के बाद उनकी सादगी भी बेमिसाल है।
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