‘हिंदी पुस्तकों के अनुवाद अब बहुत गंभीरता से नहीं किए जा रहे हैं’, साहित्य अकादेमी के कार्यक्रम में बोलीं ममता कालिया
साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ में सोमवार को लोकप्रिय और प्रख्यात लेखिका ममता कालिया पाठकों से रुबरु हुईं। अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा “घर में सबसे छोटी होने के कारण मेरी बहुत सी जिज्ञासाओं के जवाब नहीं मिल पाते थे। साथ ही बड़ी बहन के बेहद सुंदर होने मेरे सांवले रंग के कारण ही मुझे जगह-जगह अपमानित होना पड़ता था। ऐसे में अपना गुस्सा निकालने और अपने को विशेष कहलाने के लिए मैंने लेखन का सहारा लिया।”
पिता की किताबों ने बेहद साथ दिया
ममता कालिया ने आगे कहा “मुझे साबित करना था कि मैं भी कुछ हूँ। इस सब में मेरे पिता की किताबों ने मेरा बेहद साथ दिया। किताबें ऐसी मित्र होती है जो हमें चेतना देती हैं और कभी नीचा नहीं दिखाती। आगे उन्होंने बताया कि उनका प्रारंभिक लेखन अंग्रेजी में एम.ए. करने के कारण अंग्रेजी में ही था। लेकिन बाद में इलाहाबाद में रहते हुए उन्हें हिंदी में लिखने के लिए विवश होना पड़ा। इसमें मेरे पति रवींद्र कालिया का भी योगदान था।”
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि लेखन ऐसी दुनिया है, जिसमें कोई नियम नहीं चलता। कभी-कभी हमारे किरदार ही हमें फेल कर देते हैं। वर्तमान लेखन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि अब पठन-पाठन के कई नए माध्यम आ गए हैं और उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा चल रही है। लेकिन आभासी मंचों पर संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है।
हिंदी पुस्तकों के अनुवाद अब बहुत गंभीरता से नहीं किए जा रहे हैं
ममता कालिया ने कहा कि छोटे शहरों में अभी भी अध्यनशीलता, सृजनशीलता और पाठन की परंपरा है। उन्होंने वर्तमान समय में अनुवाद की महत्ता के बारे में बात करते हुए कहा कि इससे हिंदी को वैश्विक मंच प्राप्त हो सकता है, लेकिन अभी हिंदी पुस्तकों के अनुवाद बहुत गंभीरता से नहीं किए जा रहे हैं।
उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ और दो कहानियों का पाठ किया। कविताओं में जहाँ स्त्री का अकेलापन और रिश्तों का दरकना था। वहीं कहानियों में सेल्फी के दुष्परिणाम और मोबाइल पर अतिरिक्त निर्भरता को चित्रित किया गया था।
कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने उनका स्वागत अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादेमी की पुस्तक भेंट करके किया। कार्यक्रम के अंत में ममता कालिया ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
कार्यक्रम में रीतारानी पालीवाल, देवेंद्र राज अंकुर, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, सुजाता चौधरी, राजकुमार गौतम, अशोक मिश्र, यशोधरा मिश्र, गोपाल रंजन, बलराम, मोहन हिमथाणी, कमलेश जैन आदि कई प्रसिद्ध लेखक, आलोचक, संपादक एवं रंगकर्मी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।
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