National Film Awards: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह की बात ही कुछ और है

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (Droupadi Murmu) ने हाल ही में 70 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (70th National Film Awards) प्रदान किए। नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित इस समारोह की छटा देखते ही बनती थी।

मैं राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Awards) समारोह में 40 से अधिक बरसों से शामिल हो रहा हूँ। कुछ समारोह को छोड़कर अधिकतर समारोह विज्ञान भवन में ही आयोजित होते रहे हैं। हालांकि इन बरसों में बहुत कुछ बदला है। लेकिन यदि कुछ नहीं बदला तो पुरस्कारों की गरिमा और पुरस्कार लेने वालों का उत्साह।

मंगलवार 8 अक्तूबर को भी यहाँ ऐसे ही नज़ारे थे। राष्ट्रपति (President Droupadi Murmu) ने विभिन श्रेणियों में 85 से अधिक व्यक्तियों को पुरस्कार दिये। सभी पुरस्कार विजेताओं के चेहरे खिले हुए थे। समारोह में अग्रिम पंक्तियों में बैठे पुरस्कार विजेताओं के चेहरों पर खुशी के साथ गर्व और संतोष के भाव भी देखे जा सकते थे। यहाँ तक मंच पर राष्ट्रपति सहित मंत्री अश्वनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) और एल मुरूगन (L Murugan) और सूचना प्रसारण सचिव संजय जाजू (Sanjay Jaju) भी इस मौके पर काफी खुश थे। हाँ फ़िल्मकर और जूरी के अध्यक्ष राहुल रवेल (Rahul Rawail) का चेहरा ना जाने क्यों लगातार उदास दिखा।

समारोह में मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) को सिनेमा का शिखर पुरस्कार दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke Award) प्रदान किया गया। उनके हाथ में काफी तकलीफ थी। लेकिन जब वह पुरस्कार लेने मंच पर आये तो सभी उनके सम्मान में खड़े हो गए। यह देख मिथुन दा (Mithun Chakraborty) अभिभूत हो गए। पुरस्कार लेने के बाद उन्होंने अपने जीवन की कई दिलचस्प बातें बताकर समारोह को और भी खुशगवार बना दिया।

मिथुन (Mithun Chakraborty) ने बताया कि फाल्के से पहले वह इस मंच पर तीन बार अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (National Film Award) लेने आ चुके हैं। फिर भी बहुत सी बातों को लेकर वह भगवान से गिला शिकवा करते रहते थे। खासतौर से तब जब कभी लोग उनके काले रंग का मज़ाक उड़ते थे। उन्हें कालिया कहते थे।

मिथुन को अब भगवान से कोई शिकायत नहीं

मिथुन (Mithun Chakraborty) ने बताया कि “फाल्के (Dadasaheb Phalke Award) से पहले मैं इस मंच पर तीन बार अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आ चुका हूँ। जब पहली बार मुझे फिल्म ‘मृगया’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो मुझे लगा मैंने कोई बहुत बड़ा काम कर दिया है। इससे मेरा दिमाग खराब हो गया। मुझमें अहंकार आ गया। मैं खुद को महान अभिनेता अल पचीनो समझने लगा। उसी अंदाज़ में निर्माताओं से उबासी लेते हुए, मुंह को ढककर,स्टाइल के साथ बात करने लगा। लेकिन जब एक निर्माता ने मेरा अहंकार और अंदाज़ देख मुझे लात मारकर भगाया तो मेरे होश ठिकाने आ गए।”

मिथुन (Mithun Chakraborty) ने आगे कहा “उधर मैं शुरू में इस बात से परेशान रहा कि लोग मेरे काले रंग का मज़ाक उड़ाते थे। राह चलते लोग कालिया कहकर पुकारते थे। तब मैंने सोचा मैं अपने रंग को तो बदल नहीं सकता। हाँ मुझे डांस आता है। मैं अपने पैरों को ऐसे थिरकाऊँ कि लोग मेरे काले चेहरे को नहीं, मेरे नाचते पैरों को ही देखते रहें। मुझे इसमें सफलता मिली। मुझे मिला तो बहुत कुछ लेकिन बहुत मुश्किलों और तकलीफ़ों से। इसलिए मैं भगवान से गिला शिकवा करता रहता था। लेकिन अब जब मुझे फाल्के पुरस्कार मिल गया तो मैंने भोले नाथ से शिकायत करना बंद कर दिया है। भोले नाथ ने मुझे सूद सहित इतना दे दिया कि अब शिकायत का मतलब नहीं।”

राष्ट्रपति ने अपने स्कूल के दिनों को भी याद किया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Droupadi Murmu) ने समारोह में दो अहम बातों की ओर सभी का ध्यान आकर्षित किया। राष्ट्रपति ने कहा- “स्वाधीनता सेनानी और ओडिया के प्रसिद्द लेखक भगवती चरण पाणिग्रही की लिखी कहानी ‘शिकार’ हमारे स्कूल के पाठ्यक्रम में थी। उस कहानी में भोले भाले आदिवासी युवक धिनुआ का मार्मिक चित्रण आज भी मेरे मन में अंकित है। मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) ने अपनी पहली फिल्म ‘मृगया’ (Mrigayaa) में उसी अनोखे चरित्र को जीवंत बनाकर राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।”

साथ ही राष्ट्रपति (President Droupadi Murmu) ने कहा, “आज के 85 से अधिक पुरस्कारों में महिला पुरस्कार विजेताओं की संख्या 15 ही है। जबकि जब मैं शिक्षण संस्थानों में जाती हूँ तो वहाँ पुरस्कार जीतने वाली छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक होती है।”

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार लेते हुए रो पड़ी मानसी पारेख

उधर मंच पर कुछ पल ऐसे भी आए जब समारोह में खुशी के साथ आँसू भी उभर आए। यह मौका था अभिनेत्री मानसी पारेख (Manasi Parekh) के पुरस्कार ग्रहण करने का। मानसी पारेख (Manasi Parekh) को गुजराती फिल्म ‘कच्छ एक्स्प्रेस’ (Kutch Express) के लिए वर्ष 2022 की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। मानसी (Manasi Parekh) को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का यह पुरस्कार अभिनेत्री नित्या मेनन (Nithya Menen) संग संयुक्त रूप से मिला है।

नित्या (Nithya Menen) को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार तमिल फिल्म ‘थिरुचित्रम्लम’ (Thiruchitrambalam) के लिए मिला है। नित्या मेनन (Nithya Menen) ने तो अपना पुरस्कार खिलखिलाते हुए लिया। लेकिन मानसी (Manasi Parekh) जैसे ही राष्ट्रपति से मंच पर पुरस्कार लेने पहुँचीं तो अचानक फफक कर रो पड़ी। राष्ट्रपति (President Droupadi Murmu) ने भी उन्हें रोते देखा तो उन्होंने हँसते हुए मानसी (Manasi Parekh) के कंधे पर हाथ रख उसे धैर्य सा बँधाया। असल में जब मानसी (Manasi Parekh) के लिए उपस्थित व्यक्तियों ने जमकर तालियाँ बजाईं तो खुशी से उनके आँसू छलक गए।

मैंने बाद में जब मानसी (Manasi Parekh) से इस सब पर पूछा तो वह बोलीं मैं इस खुशी के मौके पर ‘इमोशनल’ हो गयी थी। जब मुझे अगस्त में पता लगा कि मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड मिला है तो मैं चौंक गयी। मेरे मुख से एक दम निकला क्या, क्या ? मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि मुझे इतना बड़ा पुरस्कार मिल गया। यह पुरस्कार तो सभी का सपना होता है।‘’

अभिनेत्री मानसी पारेख के साथ वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना

मानसी (Manasi Parekh) अब 48 बरस की हो चली हैं। दस जुलाई 1986 को गुजराती परिवार की मानसी (Manasi Parekh) का जन्म चाहे मुंबई में हुआ लेकिन अपने गुजरात से वह लगातार जुड़ी रही हैं। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि जिस फिल्म ‘कच्छ एक्सप्रेस’ (Kutch Express) के लिए मानसी (Manasi Parekh) को पुरस्कार मिला है, उसका निर्माण भी मानसी (Manasi Parekh) और उनके पति पार्थिव गोहिल (Parthiv Gohil) ने किया है।

पार्थिव (Parthiv Gohil) का नाता एक अच्छे शास्त्रीय संगीत परिवार से रहा है। वह गुजराती और हिन्दी की कई फिल्मों में पार्श्व गायक के रूप में भी अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। बतौर गायक उनकी प्रमुख फिल्मों में देवदास, साँवरिया, हु तू तू, ईएमआई और साहेब बीवी और गैंगस्टर शामिल हैं। ‘कच्छ एक्सप्रेस’ (Kutch Express) से पहले पार्थिव (Parthiv Gohil) गुजराती फिल्म ‘गोलकेरी’ के भी सह निर्माता रहे।

उधर मानसी (Manasi Parekh) सन 2003 से अभिनय की दुनिया में सक्रिय है। मानसी (Manasi Parekh) के खाते में इंडिया कॉलिंग, कसौटी, काव्यांजलि, आहत, गुलाल, लाफ़्टर दे फटके और सुमित संभाल लेगा जैसे कई सीरियल के साथ ‘उरी’ जैसी चर्चित फिल्म भी है।

क्षेत्रीय सिनेमा का बढ़ता बोलबाला

फिर बड़ी बात यह भी है कि गुजराती फिल्म ‘कच्छ एक्सप्रेस’ (Kutch Express) को कुल तीन पुरस्कार मिले हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के अलावा इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ वेशभूषा के लिए निकी जोशी को यह सम्मान मिला है। साथ ही राष्ट्रीय, सामाजिक और पर्यावरणीय मूल्यों को बढ़ावा देने वाली सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी ‘कच्छ एक्सप्रेस’ की बोगी में आया है।

इधर राष्ट्रीय फिल्म समारोह में क्षेत्रीय सिनेमा का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। मलयालम फिल्म ‘आट्टम’, तमिल फिल्म ‘पोन्नियन सेल्वन-भाग एक (PS 1)’, कन्नड फिल्म ‘कांतारा’ (Kantara) और ‘केजीएफ चैप्टर-2’ (KGF Chapter-2) जैसी फिल्मों को तो दो से चार पुरस्कार तक मिले। यहाँ तक हरियाणवी फिल्म ‘फ़ौजा’ ने, निर्देशक की पहली फिल्म (निर्देशक प्रमोद कुमार) सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (पवन मल्होत्रा) और सर्वश्रेष्ठ गीतकार (नौशाद सदर खान) तीन पुरस्कार जीतकर हरियाणवी सिनेमा में नया इतिहास रच दिया।

समारोह में मणी रत्नम, ए आर रेहमान, करण जोहर, सूरज बड़जात्या, अयान मुखर्जी, ऋषभ शेट्टी, प्रीतम, नीना गुप्ता, मनोज बाजपेयी, जयश्री बॉम्बे जैसी और भी कई फिल्म हस्तियाँ सम्मानित हुईं।

बाल कलाकार श्रीपथ को जन्म दिन पर मिला पुरस्कार

समारोह में मलयालम फिल्म ‘मल्लिकपुरम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार पुरस्कार जीतने वाले श्रीपथ (Sreepath) के लिए तो यह दिन दोहरी खुशी लेकर आया। क्योंकि 8 अक्तूबर को ही उसका जन्म दिन भी था।

सभागार में श्रीपथ (Sreepath) के जन्म दिवस वाली बात प्रसिद्द उद्घोषिका ममता चोपड़ा (Mamta Chopra) ने सभी के साथ साझा की तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Droupadi Murmu) ने अपने भाषण में अलग से भी श्रीपथ को जन्म दिन की बधाई देते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

शर्मिला टैगोर बनी रहीं सभी का आकर्षण

समारोह में सुप्रसिद्द अभिनेत्री शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore) की उपस्थिती भी सभी को आकर्षित करती रही। उन्हें स्वयं तो कोई पुरस्कार नहीं मिला। लेकिन उनकी फिल्म ‘गुलमोहर’ (Gulmohar) को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार (National Film Award) मिला था। शर्मिला (Sharmila Tagore) कहती हैं-‘’मैं अपनी फिल्म की टीम को बधाई देने के लिए आई हूँ।‘’ शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore) यूं 79 बरस की हो गयी हैं। लेकिन उनकी खूबसूरती आज भी बरकरार है।

शर्मिला ने 14 साल की उम्र में ही सत्यजित राय की फिल्म ‘द वर्ल्ड ऑफ अपू’ से अपने अभिनयी जीवन की शुरुआत की थी। कुछ और चर्चित बांग्ला फिल्मों के बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ ‘कश्मीर की कली’ से हिन्दी फिल्मों में पदार्पण किया। इसके बाद तो शर्मिला ने इतिहास रच दिया। उनकी अनुपमा, एन एवनिंग इन पेरिस, आराधना, दाग, अमर प्रेम और चुपके चुपके जैसी शानदार फिल्मों का जादू अभी भी दर्शकों के सिर चढ़ कर बोलता है। वह जहां पदमभूषण से सम्मानित हो चुकी हैं। वहाँ उन्हें ‘मौसम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कुल दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।

देश में बरसों से हर बरस कितने ही फिल्म पुरस्कार समारोह होते हैं। लेकिन सच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की बात ही कुछ और है।

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