Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण की गीता को पढ़ना-समझना हुआ बेहद आसान, अविनाश कुमार ने अपनी कविताओं से रच दी है एक सरल आकर्षक ‘सहज गीता’

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

हमारा पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमदभगवदगीता’ (SRIMAD BHAGAVAD GITA) शताब्दियों से ऐसा ग्रंथ है, जो भारत ही नहीं विश्व के लिए आदर्श मार्ग प्रशस्त करता रहा है। गीता (Gita) में ज्ञान और कर्म के साथ भक्ति को भी इतने अनुपम ढंग से परिभाषित किया है कि यह विश्व में भारत का सर्वाधिक प्रसिद्द ग्रंथ बन गया है। मान्यता है कि गीता (Gita) की रचना ऋषि वेद व्यास (Ved Vyas) ने की। उनके कथन को भगवान गणेश (Lord Ganesh) ने स्वयं अपने कर कमलों से लिखा।

तत्पश्चात देश-विदेश के कई विद्वान गीता (Gita) की व्याख्या अपने अपने ढंग से करते रहे हैं। जिनमें प्राचीन काल के आदिशंकराचार्य (Adi Shankaracharya) से आधुनिक काल के स्वामी रामभद्राचर्या (Swami Rambhadracharya) भी हैं। साथ ही संत ज्ञानेश्वर,चैतन्य महाप्रभु, महर्षि अरविंद घोष, मधुसूदन सरस्वती, श्रील प्रभुपाद और ओशो रजनीश भी। इतना ही नहीं महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, डॉ राधा कृष्णन, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी गीता की व्याख्या को नए रंग, नए भाव दिये।

गीता को 85 से अधिक भाषाओं में हजारों बार अनुवाद किया जा चुका है

श्रीमदभागवत की शक्ति, महिमा और अपार लोकप्रियता देखते हुए अब तक असंख्य विदेशी लेखक भी इस ग्रंथ का 85 से अधिक भाषाओं में हजारों बार अनुवाद और इसकी व्याख्या कर चुके हैं। जिनमें विलियम जोन्स, चार्ल्स विलिकन्स, एडविन अनार्ल्ड, वारेन हेस्टिंग्स और एनी बेसेंट सहित और भी बहुत नाम शामिल हैं।

कठिन शब्दों को ना समझने वालों के लिए वरदान है ‘सहज गीता’

इधर हाल ही में एक और विद्वान लेखक अविनाश कुमार (Avinash Kumar) ने सम्पूर्ण गीता को, हिन्दी काव्य में ‘सहज गीता’ (Sahaj Gita) के नाम से प्रस्तुत किया है। अविनाश कुमार (Avinash Kumar) की ‘सहज गीता’ (Sahaj Gita) उन व्यक्तियों के लिए वरदान है, जो गीता (Gita) के गूढ़-कठिन शब्दों को समझ नहीं पाते। लेकिन वे गीता (Gita) को पढ़ने-समझने में बहुत दिलचस्पी रखते हैं।

‘प्रभात प्रकाशन’ ने किया है ‘सहज गीता’ का प्रकाशन

‘सहज गीता’ (Sahaj Gita) का प्रकाशन दिल्ली के सुप्रसिद्द प्रकाशन संस्थान ‘प्रभात प्रकाशन’ (Prabhat Prakashan) ने बहुत सुंदरता के साथ किया है। लेखक ने अपनी इस पुस्तक में गीता के सम्पूर्ण 18 अध्यायों के समस्त 700 श्लोकों को सहज-सरल शब्दों में लिखकर प्रशंसनीय और अविस्मरणीय कार्य किया है।

पुस्तक में गीता के 18 अध्यायों में 18 पुराणों का सार है

अविनाश (Avinash Kumar) ने संस्कृत के मूल श्लोकों को सरल हिन्दी में लिखने के साथ गीता (Gita) से जुड़ी कई अहम बातें भी पुस्तक में बताई हैं। जैसे गीता (Gita) के 18 अध्यायों में 18 पुराणों का सार है। इन 18 अध्यायों को 18 योग भी कहा जाता है क्योंकि ये सभी अध्याय मानव को परमात्मा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। फिर यह भी कि मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को किन 18 इंद्रियों को आहुती देनी होती है।

गीता के 10 सूत्र भी बताए गए हैं

साथ ही पुस्तक में गीता (Gita) के 10 सूत्र भी बताए हैं- आत्म, कर्मयोग, स्थित-प्रज्ञ, कर्म-अकर्म-विकर्म, आत्म संयम,कृष्णपक्ष-शुक्लपक्ष, साकार निराकार, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान, सात्विक–राजसिक-तामसिक और ओम्-तत्-सत्। फिर कृष्ण के 18 नाम भी पुस्तक में विशेष रूप से दिये हैं।

अविनाश कुमार (Avinash Kumar) ने पुस्तक के अंत में ओम्-तत्-सत् की महिमा को भी व्याख्यित किया है। वह कहते हैं-‘’ओम्-तत्-सत् गीता का ऐसा गुरु मंत्र है जिसके द्वारा हम अपने प्रत्येक प्रयोजन को सिद्द कर सकते हैं।

श्लोक पढ़ते ही मस्तिक के साथ हृदय में भी उतर जाता है

उधर हम श्लोकों की सहजता की बानगी देखें तो लगभग सभी श्लोक एक बार पढ़ते ही मस्तिक के साथ हृदय में भी उतरते चले जाते हैं। प्रथम अध्याय में ही इन हिन्दी श्लोकों की सहजता की अनुभूति हो उठती है जैसे –‘’क्या मिले आनंद, जनार्दन, धृत पुत्रों को मार के। इसमें केवल पाप चढ़ेगा, जीत बुरी ये हार से।‘’ अर्जुन की यह बात सुन दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘’जीवन-मरण न हाथ में तेरे, ये तो हरि की माया। मात्र युद्ध करने को तेरे, भाग्य ने तुझे बुलाया।‘’ एक और श्लोक –‘’जीवित है जो उसको मरना, जो मरा पुनः जन्मेगा। जीव-मरण के चक्र का तू, कब तक शोक करेगा।‘’ गीता के सातवें अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं-‘’मुझको पाने योगी-भोगी,जतन करें हज़ार। कोई-कोई ही किन्तु मेरा, जाने पूर्ण आकार।‘’

फिर 11 वें अध्याय में प्रभु के विराट दिव्य दर्शन से ठीक पूर्व अर्जुन कहते हैं-‘’हे केशव, आपने मुझ पर, किरपा ऐसी बरती है। दिव्य ज्ञान ने मेरा मोह, दुर्बलता भी हर दी है।‘’ इस पर कृष्ण कहते हैं- ‘’भक्त कोई जो चिर भक्ति से, याद मुझे कर जाए। वह ही मेरे तत्व को दरशे, प्राप्त मुझे कर पाए।‘’

‘सहज गीता’ की भूमिका उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लिखी

पुस्तक सहज गीता (Sahaj Gita) की खास बात यह भी है कि इसकी भूमिका उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने लिखी है। जबकि पुस्तक में अनुमोदन परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने लिखा है।

गीता को समझने में मुझे 10 बरस लग गए- अविनाश कुमार

पिछले दिनों अविनाश कुमार से भेंट हुई तो उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सहज गीता’ मुझे भेंट की। अविनाश कुमार आईईटी कानपुर औरआईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्र रहे हैं। पुस्तक को लेकर जब हमने अविनाश कुमार (Avinash Kumar) से बात की तो उनके चेहरे पर एक बड़ा और अच्छा कार्य करने के सुखद भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे। अविनाश (Avinash Kumar) बताते हैं-‘’इस पुस्तक को मैंने लिख तो तीन वर्षों में लिया था। लेकिन इसकी परिकल्पना करीब 7 वर्ष पहले स्वतः ही उभरने लगी थी। हालांकि गीता (Gita) को पढ़ने-समझने में मुझे 10 बरस लग गए।”

अविनाश कुमार (Avinash Kumar) आगे बताते हैं “दिलचस्प यह है कि आरंभ में गीता (Gita) पढ़ना मुश्किल और उबाऊ लगा। करीब 4 साल तक मैं गीता के दो अध्याय में ही अटका रहा। लेकिन फिर कोई ऐसा चमत्कार हुआ कि गीता (Gita) के सभी श्लोक आत्मसात होते चले गए। तभी मुझे प्रेरणा मिली कि गीता (Gita) को यदि सरल-सहज हिन्दी कविता के रूप में लिखूँ तो अनेक लोग गीता (Gita) ज्ञान का सुख पाकर लाभान्वित हो सकेंगे। आज जब मुझे दूर-दूर से ‘सहज गीता’ की रचना के लिए लोगों का स्नेह और उनकी सराहना, शुभकामनायें मिलती हैं तो मन प्रसन्न हो जाता है।‘’

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