साहित्यकार विजय वर्मा ने लिख दी है सबसे लंबी गज़ल

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता (Sahitya Akademi Award Winner) और डोगरी (Dogri) के जाने माने साहित्यकार विजय वर्मा (Vijay Verma) हाल ही में जम्मू से दिल्ली आए तो उनसे खास मुलाक़ात हुई। गत मार्च में विजय वर्मा (Vijay Verma) को जब उनकी कृति ‘दऊं सदियां इक सीर’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तब भी उनसे मुलाक़ात हुई थी। वह अच्छे साहित्यकार, कवि ही नहीं एक अच्छे प्रसारक और अच्छे इंसान भी हैं।

विजय वर्मा (Vijay Verma) की नवीनतम पुरस्कृत कृति ‘दऊं सदियां इक सीर’ (‘दो सदियाँ एक धारा’) डोगरी की एक अनुपम कृति है। इस कृति की सबसे खास बात यह है कि इसमें उनकी लिखी एक ऐसी लंबी गज़ल है, जिसमें 721 शेर हैं। यह डोगरी भाषा की तो सबसे लंबी गज़ल है ही। आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी इसे देश की सबसे लंबी गज़ल कहा जा रहा है।

विजय वर्मा (Vijay Verma) ने अपने इस गज़ल में विश्व भर की अनेक परम्पराओं और विसंगतियों पर व्यंग्य कसा है। इस कृति को डोगरी काव्य ही नहीं भारतीय काव्य साहित्य के इतिहास में भी बराबर याद किया जाएगा। क्योंकि इसमें डोगरा समाज के बेहद खास शब्द, मुहावरों और संस्कृति आदि को भी अनुपम रूप में प्रस्तुत किया है।

विजय वर्मा कई पुस्तकों से डोगरी लेखन में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं

विजय (Vijay Verma) इससे पहले भी 5 अन्य पुस्तकों से डोगरी लेखन में अपनी विशिष्ट पहचान बनाकर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। उनकी पुस्तक ‘कलीरे दी कौड़ी’,‘रणताली रात’ और ‘कुलदीप सिंह जिंद्राहिया’ हों या फिर ‘आधुनिक भारतीय कविता संचयन’ सभी को सराहना मिली।

जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी भी 20 बरस पहले उन्हें सर्वश्रेष्ठ युवा कवि पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। विजय वर्मा (Vijay Verma) काव्य-साहित्यिक जगत में तो विशेष उपलब्धि और सम्मान अर्जित कर चुके हैं। साथ ही वह बरसों आकाशवाणी में भी एक प्रसारक की भूमिका में चर्चित रहे। करीब दो वर्ष पहले ही वह आकाशवाणी जम्मू से वरिष्ठ समाचार वाचक और अनुवादक के पद से सेवानिवृत हुए हैं।

मुझे 1985 के दौर के वे दिन याद आते हैं,जब वह सामायिक विषयों के सर्वाधिक चर्चित कार्यक्रम ‘सामयिकी’ में मेरी हिन्दी में लिखित सामयिकी को डोगरी में पढ़ते थे। इसलिए अब मुलाक़ात होने पर हमने आकाशवाणी के पुराने दिनों और दोस्तों को तो याद किया ही। साथ ही डोगरी साहित्य को लेकर भी बात की।

डोगरी साहित्य के एक बड़े हस्ताक्षर बन गए हैं

डोगरी साहित्य से मेरा पहला सही परिचय पद्मा सचदेव के कारण हुआ था। जिन्हें डोगरी भाषा की पहली आधुनिक  कवयित्री कहा जाता है। लेकिन डोगरी साहित्य में केहरि सिंह मधुकर, वेद राही, ओम गोस्वामी, रामनाथ शास्त्री, चम्पा शर्मा, यश शर्मा, वेदपाल दीप, नरेंद्र खजूरिया और वीणा गुप्ता जैसे लोग भी डोगरी साहित्य को समृद्द करते रहे हैं। इधर विजय वर्मा तो अब डोगरी साहित्य के एक बड़े हस्ताक्षर बन गए हैं।

धारा 370 हटने के बाद डोगरी प्रगति के नए पथ पर है

डोगरी साहित्य की आज क्या स्थिति है, जब यह बात मैंने विजय वर्मा (Vijay Verma) से पूछी तो वह बोले- ‘’मुझे खुशी है कि कई मुश्किलों के बावजूद डोगरी भाषा प्रगति कर रही है। साथ ही डोगरी साहित्य में भी अपार संभावनाएं हैं। डोगरी भाषा चाहे काफी पुरानी है। लेकिन डोगरी को अधिक महत्व तब मिला जब अटल बिहारी बाजपेयी जी के शासन में दिसंबर 2003 में डोगरी को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल किया गया। उसके बाद डोगरी की पुस्तकें प्रकाशित होने का सिलसिला बढ़ निकला।”

विजय वर्मा (Vijay Verma) आगे बोले “इधर कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद जब जम्मू कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठन हुआ तो 2020 में डोगरी को जम्मू कश्मीर की राजभाषा घोषित कर दिया गया। इसके बाद तो डोगरी प्रगति के नए पथ पर है। डोगरी पर नित नयी पुस्तकें आ रही हैं। डोगरी में फिल्में बन रही हैं। लेकिन डोगरी को अभी और सम्मान और अधिकार मिलने की अपेक्षा है।‘’

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