भारतीय अंग्रेज़ी कविता के पुरोधा थे जयंत महापात्र,साहित्य अकादेमी ने जताया शोक, अनेक साहित्यिक उपलब्धियों से परिपूर्ण था जीवन

  • प्रदीप सरदाना

    वरिष्ठ पत्रकार 

देश में अँग्रेजी साहित्य में बरसों से बड़ा नाम रहे जाने माने कवि पदमश्री जयंत महापात्र के निधन से साहित्य जगत स्तब्ध है। उन्होंने देश में अग्रेजी कविता को एक नया शिखर दिया। हालांकि वह 95 बरस के थे और पिछले कुछ बरसों से वृदावस्था जनित रोगों से पीड़ित थे। लेकिन उन जैसे अँग्रेजी और ओडिया साहित्यकार की उपस्थिती एक अलग सुख देती रही। उनका जीवन अनेक साहित्यिक उपलब्धियों और पुरस्कारों से परिपूर्ण था। सन 1981 में वह साहित्य अकादेमी पुरस्कार पाने वाले पहले अँग्रेजी कवि बने।

प्रख्यात अंग्रेजी कवि,विद्वान और साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य जयंत महापात्र की स्मृति में सोमवार 28 अगस्त को दिल्ली में साहित्य अकादेमी ने भी शोक प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही एक मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा जारी शोक प्रस्ताव में कहा गया है, हमें यह समाचार सुनकर अत्यंत कष्ट और शोक हुआ कि रविवार, 27 अगस्त 2023 को भारतीय अंग्रेज़ी कविता के पुरोधा, प्रतिष्ठित विद्वान और साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य प्रोफेसर जयंत महापात्र का कटक में, निधन हो गया है। प्रोफेसर जयंत महापात्र ने भारतीय अंग्रेज़ी कविता की आधारशिला रखी तथा उन्होंने केवल कविता ही नहीं बल्कि समग्र रूप से भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान दिया।

अपने लंबे और उत्कृष्ट कार्य-जीवन में, प्रोफेसर महापात्र की अंग्रेज़ी और ओड़िआ में 30 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हुईं तथा उन्हें ‘रिलेशनशिप’ (कविता-संग्रह) के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित पद्मश्री, साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता, जैकब ग्लैडस्टीन मेमोरियल अवार्ड, एलन टेट कविता पुरस्कार, टाटा लिटरेचर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और सार्क लिटरेचर अवार्ड सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किया गया।

प्रोफेसर जयंत महापात्र अंग्रेज़ी में साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा महत्तर सदस्यता प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय कवि थे। प्रो.जयंत महापात्र आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे अपने पीछे समृद्ध कृतियाँ और विरासत छोड़ गए हैं जिससे वह हमेशा जीवंत बने रहेंगे।

पहले शिक्षक बने और फिर 38 की उम्र में हुई कविता की शुरुआत  

बता दें 27 अक्तूबर 1928 को कटक में लेमूएल महापात्र और सुधांसा महापात्र के यहाँ जन्मे जयंत ने पहले कटक के स्टीवर्ट स्कूल में पढ़ाई की। तत्पश्चात पटना विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातकोत्तर किया। उसके बाद 1949 में उन्होंने शिक्षक पेशे को अपनाया। सन 1986 तक वह भुवनेश्वर सहित राज्य के के विभिन्न महाविद्यालयों में शिक्षक रहे।

एक शौकिया कवि के रूप में जयंत ने कविता लिखना यूं 38 की आयु में आरंभ किया। लेकिन जल्द ही वह ओडिया और अँग्रेजी साहित्य में बड़ा नाम बन गए। उन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका ‘चंद्रभागा’ का सम्पादन भी किया। यहाँ तक कटक के उनके निवास का नाम भी चंद्रभागा है।

गत 4 अगस्त को निमोनिया होने के कारण उन्हें कटक के श्री राम चंद्र भांजा अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां 27 अगस्त रात 9 बजे को दिल का दौरा और मानसिक आघात के कारण उनका निधन हो गया।

महापात्र के निधन पर ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा सहित विभिन्न संस्थाओं ने भी शोक व्यक्त किया है।

सोमवार को जब कटक के खान नगर शमशान भूमि में राष्ट्रीय मर्यादाओं के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया, तब भी वहाँ कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। जहां जयंत महापात्र को उनके भतीजे ने मुखाग्नी दी।

स्त्री पुरुष सम्बन्धों के साथ प्रेम और दर्द भी झलकता है कविताओं में

जयंत की जहां 20 से अधिक अँग्रेजी पुस्तकें प्रकाशित हुईं। वहाँ उनकी 7 पुस्तकें ओडिया में भी हैं। उनकी अनेक कवितायें स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर हैं। उनकी कविताओं में दर्द, प्रेम, विश्वाश और मृत्यु के समाज समाज और धर्म की कुरीतियों पर भी काफी कुछ कहा गया है। उनकी एक कृति ‘डॉन एट पुरी’ में पुरी में कुछ पुजारियों के पाखंड को दर्शाती है।

उनकी अन्य प्रसिद्द कृतियों में इंडियन समर, हंगर,बेयर फेस, बाली, वेटिंग, शैडो स्पेस और फादर्स आवर्स भी शामिल हैं। सन 2009 में भारत सरकार ने जयंद महापात्र को पदमश्री से सम्मानित किया था। हालांकि वह तब विवादों में भी रहे जब 2015 में देश में असहिष्णुता की बात कहकर पदमश्री लौटाने की बात कही थी।

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