‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ का कुरुक्षेत्र में लोकार्पण, सी आर मुकुंद, सोमनाथ सचदेवा और रत्न चंद सरदाना सहित मौजूद रहीं कई हस्तियाँ

प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

पावन तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र को लेकर एक किवदंती है। यदि कोई कहे ‘हम कुरुक्षेत्र जा रहे हैं’ या ‘कुरुक्षेत्र से आ रहे हैं’, तो इतना भर कहने से भी उस व्यक्ति को कई पुण्यों का फल मिलता है। विदित है कुरुक्षेत्र वह भूमि है, जहां महाभारत युद्द हुआ। लेकिन यह भूमि हजारों साल से लोकप्रिय तीर्थ स्थल इसलिए बनी हुई है कि युद्द पूर्व भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान यहीं दिया था। इसलिए यह भगवदगीता की भूमि भी है और इसीलिए इतनी पावन है। जहां प्रतिदिन विश्व भर से असंख्य व्यक्ति आते हैं।

इधर पिछले दिनों कुरुक्षेत्र की इसी भूमि पर एक और श्रेष्ठ कार्य हुआ। वह कार्य था – ग्रंथ ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ का लोकार्पण। एकात्म मानववाद यूं सनातन धर्म और भारतीय चिंतन का शताब्दियों पुराना स्वरूप है। एकात्म मानववाद के मूल मंत्र हमारे पुराणों में भी मिलते हैं और हिन्दू धर्म संस्कृति में भी। एकात्म मानववाद, मानव जीवन और सृष्टि के परस्पर संबंध का एक मात्र दर्शन है। जहां ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ की बात है तो यह भी कि विविध ब्रह्मांड के संचालन में मूलतः सभी तत्वों में एकता है। सभी एक ही चेतना से विकसित होते हैं। मानव का शरीर, मन, बुद्धि और जीवात्मा में भी 4 अलग-अलग स्वरूप नहीं, ये चारों एक ही समग्र चक्र से जुड़े हैं।

 पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने किया था एकात्म मानववाद का विवेचन

आधुनिक काल में एकात्म मानववाद को प्रथम बार सार्वजनिक रूप से पंडित दीन दयाल जी उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyaya) ने 1965 में मुंबई में प्रस्तुत किया था। जहां 22 से  25 अप्रैल 1965 के 4 दिनों के अपने 4 भाषणों में उन्होंने इस दर्शन का पूर्ण वैज्ञानिक विवेचन किया था। बाद में विभिन्न विचारकों ने एकात्म मानववाद को एकात्म मानव दर्शन का नाम दिया। आज इस चिंतन-दर्शन में विश्व का रुझान बढ़ रहा है।

पी एम मोदी भी इस दर्शन और सिददान्त पर देते हैं बल

देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) भी, दीन दयाल जी के इस चिंतन और उनके आर्थिक सिद्धान्त अंत्योदय को बल देते रहते हैं। इधर कुरुक्षेत्र में ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ के लोकार्पण हुआ तो समारोह में कई विशिष्ट व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। समारोह का आयोजन ‘पुनरुत्थान विद्यापीठ’ और ‘विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान’ के संयुक्त तत्वाधान में हुआ।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सी आर मुकुंद ने  किया विमोचन

ग्रंथ का विमोचन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सह–सरकार्यवाह सी आर मुकुन्द (CR Mukund) ने किया। वहाँ समारोह की अध्यक्षता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (Kurukshetra University) के कुलपति प्रो डॉ सोमनाथ सचदेवा (Professor Dr Somnath Sachdeva) ने की। पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति इन्दुमति काटदरे और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ ललित बिहारी गोस्वामी भी समारोह में मौजूद थे।

रत्न चंद सरदाना ने किया है हिन्दी संस्करण का अनुवाद

बता दें ‘पुनरुत्थान प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित ‘मानव दर्शन संकल्पना कोश’ के इस हिन्दी संस्करण से पूर्व इसका अंग्रेजी संस्करण  आया था, जिसका संपादन रविन्द्र महाजन और नाना लेले ने किया था। अब उस अंग्रेजी  संस्करण के जिस हिन्दी संस्करण का विमोचन हुआ उसका अनुवाद कुरुक्षेत्र के विद्वान और प्रसिद्द शिक्षाविद रत्न चंद सरदाना (Ratan Chand Sardana) ने किया है। इसलिए समारोह में रत्न चंद सरदाना और रविन्द्र महाजन की उपस्थिती भी सभी का आकर्षण बनी रही।

सी आर मुकुन्द ने इस मौके पर एकात्म मानव दर्शन के विभिन्न पहलूओं को अच्छे से समझाया। उन्होंने कहा- ‘’आज विश्व जिस दौर से गुजर रहा है उसमें भारतीय ज्ञान परंपरा का अत्यंत महत्व है।‘’

पाठकों के साथ मानव दर्शन के शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी है पुस्तक

उधर लेखक रत्न चंद सरदाना (Ratan Chand Sardana) ने व्यक्तिगत बातचीत में बताया-‘’हमारे प्राचीन ज्ञान को वर्तमान जीवन में किस तरह प्रयोग में लाया जाये, यह पुस्तक उसकी कुंजी है। पुस्तक में जीवन के 4 पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सम्पूर्ण व्याख्या है। यह पुस्तक आम पाठकों के लिए तो श्रेष्ठ है ही, साथ ही मानव दर्शन के शोधार्थियों के लिए भी बेहद उपयोगी है।”

रत्न चंद सरदाना (Ratan Chand Sardana) ने आगे कहा “इस पुस्तक का अनुवाद करने में मुझे करीब 6 महीने लगे। लेकिन इसका अनुवाद करना सुखकर रहा। इससे भारतीय चेतना की अनुभूति होती है। ऋषियों मुनियों के पुरातन ज्ञान का बोध होता है। ‘मानव दर्शन संकल्पना कोश’ उसी पुरातन ज्ञान की आधुनिक प्रस्तुति होने के साथ, पूंजीवाद और साम्यवाद जैसी असफल व्यवस्थाओं का एक श्रेष्ठ भारतीय विकल्प भी है।‘’

रत्न चंद सरदाना की बीसवीं पुस्तक

रत्न चंद सरदाना (Ratan Chand Sardana) को उनके विशिष्ट योगदान के लिए समारोह में सम्मानित भी किया गया।  पिछले 20 बरसों में यह उनकी बीसवीं पुस्तक है। जिनमें उपन्यास, कविता-कहानी संग्रह के साथ महापुरुषों की जीवन गाथाएँ भी शामिल हैं। मृत्युंजय, लाडपुर का लाल सिंह, प्रभा और विभीषिका जैसे उनके उपन्यास तो काफी सराहे गए।

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