Ramdarash Mishra@100: साहित्य के हिमालय पुरुष हैं रामदरश मिश्र, साहित्य अकादेमी ने यूं मनाई रामदरश मिश्र की जन्म शताब्दी, कई प्रतिष्ठित लेखकों-कवियों ने रखे अपने विचार

Edited by Kritarth Sardana. साहित्य अकादेमी द्वारा वयोवृद्द प्रतिष्ठित कवि, कथाकार रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बुधवार को दिल्ली में संगोष्ठी का उद्घाटन प्रख्यात गुजराती लेखक एवं साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य रघुवीर चौधरी ने किया। रामदरश मिश्र स्वयं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बीज भाषण प्रख्यात हिंदी लेखक प्रकाश मनु ने दिया और अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया।

समारोह में कई प्रसिद्द लेखकों, कवियों और पत्रकारों के साथ रामदरश  जी के शिष्यों और प्रशंसकों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। जिससे अकादेमी का सभागार खचाखच भरा था।

रामदरश मिश्र के स्वभाव की सरलता उनके लेखन में भी है- के. श्रीनिवासराव

कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने इस अवसर को दुर्लभ अवसर बताते हुए कहा कि रामदरश मिश्र के स्वभाव की सरलता उनके लेखन में भी है, जो उनके व्यक्तित्व के साथ ही उनके कृतित्व को महत्त्वपूर्ण बनाता है।

रामदरश मिश्र के छोटे उपन्यास भी विशिष्ट हैं – रघुवीर चौधरी

रघुवीर चौधरी जो अहमदाबाद में श्री मिश्र के शिष्य भी रहे, ने अपने ‘सर’ को याद करते हुए गुजरात संबंधी अनेक संस्मरण श्रोताओं से साझा किए। उन्होंने उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्वों और कहानियों के अंत में मानवता जाग्रत होने वाले बिंदुओं पर विशेष चर्चा की। आगे उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास पात्रों के विशिष्ट चरित्र चित्रण के नाते महत्त्वपूर्ण हैं। ‘अपने लोग’ को उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके छोटे उपन्यास भी अपनी कलात्मकता में विशिष्ट हैं । रामदरश मिश्र द्वारा गाए जाने वाले कजरी गीतों को याद करते हुए कहा कि वे सस्वर गाते थे।

रामदरश मिश्र साहित्य के हिमालय पुरुष हैं – प्रकाश मनु

बीज वक्तव्य देते हुए प्रकाश मनु ने कहा कि श्री मिश्र साहित्य के हिमालय पुरुष है, जिसके नीचे बैठकर नयी पीढ़ी अनेक बातें सीख सकती है। उनके संपूर्ण लेखन में समय का इतिहास प्रभावित होता है और उस सबका मिज़ाज गंगा जमुनी है। उनकी कविताओं में नए जमाने का बोध तो है ही उनका गद्य भी बहुत प्रभावशाली है। उनकी हर विधा में आम-आदमी ही केंद्र में है।

कोई नशा नहीं किया, पान भी नहीं खाया- रामदरश मिश्र

रामदरश मिश्र ने इस भव्य आयोजन के लिए साहित्य अकादेमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस सम्मान से मैं अभिभूत हूँ। उन्होंने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए “मैं तीन कारण बताता हूँ पहला -मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाजार से कोई संबंध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पीया।”

रामदरश मिश्र ने अपने कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि “मैं अमूमन जहाँ जाता हूँ, वहीं का होकर रह जाना चाहता हूँ। इसीलिए मुझे घर घुसवा भी कहा जाता है। उन्होंने अपने गुजरात के आठ वर्षों को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए उमा शंकर जोशी और भोला भाई पटेल को भी याद किया। अपने गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी के भी कई संस्मरण उन्होंने सुनाए। अंत में उन्होंने अपने कई मुक्तक, कविताएँ एवं अपनी सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे” सुनाई।

मानवता को प्रतिष्ठित किया है रामदरश मिश्र की कविताओं में- कुमुद शर्मा

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।

पूरी सदी का काव्य बोध लेखन में झलकता है

प्रथम सत्र रामदरश मिश्र के पद्य साहित्य पर केंद्रित था जिसकि अध्यक्षता बाल स्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताकत है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।

द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर रहा केंद्रित

द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा, वेदप्रकाश अमिताभ और वेदमित्र शुक्ल ने आलेख-पाठ किया। अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है।

वेदमित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से विचार करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश है। इसीलिए इनमें ‘जीवन-राग’ की सहजता देखी जा सकती है।

वेद प्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है।

अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि उनके लेखन में सहज रूप में मानवीय मूल्यों की स्थापना पाई जाती है। उनकी सभी रचनाओं में जीवन संघर्ष का सच्चा प्रतिनिधित्व है और वह समय के साथ अपने को बदलते भी रहे हैं। कुल मिलाकर रामदरश मिश्र समग्र साहित्य की रचना के पक्षधर है।

कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। कार्यक्रम में रामदरश मिश्र के पूरे परिवार के साथ ही उनके अनेक शिष्य, लेखक ,कॉलेज के विद्यार्थी और पत्रकार उपस्थित थे।

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