दुर्गा जसराज ने की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु से मुलाक़ात, पंडित जसराज की भी आई याद

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज पंडित जसराज (Pandit Jasraj) की पुत्री दुर्गा जसराज (Durga Jasraj) ने एक अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (Droupadi Murmu) से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में उनके साथ ‘पंडित जसराज कल्चर फाउंडेशन’(Pandit Jasraj Culture Foundation) के सह संस्थापक नीरज जेटली भी मौजूद थे।

राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति से मुलाक़ात के बाद दुर्गा जसराज अभिभूत थीं। उन्होंने मुलाक़ात के बाद कहा- ‘’माननीय राष्ट्रपति जी से मिलना एक आशीर्वाद था। इस तरह के लम्हे जीवन भर प्रेरणा देते हैं। भारतीय संगीतज्ञ की अगली पीढ़ी को आत्म निर्भर बनाने के राष्ट्रपति जी के करुणामयी शब्दों ने हमें और भी उत्साह से भर दिया। इस सबसे हमें ‘पंडित जसराज कल्चर फाउंडेशन’ के उद्देश्यों को आगे ले जाने में मदद मिलेगी।‘’

बता दें ‘पंडित जसराज सांस्कृतिक प्रतिष्ठान’ की स्थापना उनकी स्मृति में उनके 92 वें जन्मदिन पर 28 जनवरी 2022 को की गयी थी। उनकी बहुमुखी प्रतिभा की धनी बेटी दुर्गा जसराज और नीरज जेटली द्वारा स्थापित इस फाउंडेशन का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था।

उस दिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीएम मोदी ने पंडित जसराज को शिद्दत से याद किया। साथ ही पंडित जसराज की विरासत जीवित रखने के लिए पुत्री दुर्गा जसराज और पुत्र पंडित सारंग देव की सराहना भी की। प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष अपने सम्बोधन में कहा था–‘’जसराज जी को सुनने और मिलने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था। भारतीय संगीत में मानव मन को गहराई से झकझोरने की क्षमता है। दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति भारतीय संगीत के बारे में जानने,सीखने और लाभ पाने का हकदार है। इसका ख्याल रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।‘’

पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार जिले (अब फतेहाबाद जिला) के गाँव पीली मंदोरी में हुआ था। जब वह 14 साल के थे तो संगीत की दुनिया में कुछ नया करने के लिए वह यहाँ से पहले हैदराबाद और फिर मुंबई चले गए। लेकिन अपने गाँव से उनका लगाव बना रहा। अंतिम बार अपने गाँव में वह 2014 में आए थे। तब अपने पिता पंडित मोतीराम की स्मृति में उन्होंने यहाँ एक पुस्तकालय भी बनवाया था। आज भी उनके परिवार के कई सदस्य इसी गाँव में रहते हैं।

पंडित जसराज जी ने संगीत की दुनिया में करीब 80 बरस दिये। पहले वह तबला वादक बने लेकिन उनका मन गायन के लिए मचलता था। इसलिए मेवाती घराने के पंडित जसराज ने ख्याल गायकी में कुछ बड़ा करने का विचार बनाया। जब वह 22 बरस के थे तो उन्होंने मंच पर पहला गायन प्रस्तुत किया। इसके बाद वह नित आगे बढ़ते गए।

देश-विदेश में अपने गायन से उन्होंने शास्त्रीय संगीत को एक नया शिखर दे दिया। पंडित जसराज को पदमश्री,पदम भूषण और पदम विभूषण जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान तो मिले ही। साथ ही संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार,मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार,लता मंगेशकर पुरस्कार और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने मंगल और बृहस्पति के बीच 11 नवंबर 2006 को एक लघु ग्रह मिलने पर उस ग्रह का नाम इनके सम्मान में ‘पंडित जसराज’ रख दिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तो पंडित जी के सुरों के इतने मुरीद थे कि उन्होंने इन्हें ‘रसराज’ की उपाधि दे दी थी।

लेकिन अफसोस 17 अगस्त 2020 को संगीत के इन महानायक ने 90 बरस की आयु में, दुनिया को अलविदा कह दिया। तब वह अमेरिका के न्यू जर्सी में थे।

हालांकि पंडित जसराज 90 बरस की उम्र में भी काफी चुस्त थे। उनसे मिलना, उन्हें मिलने,उन्हें सुनने का सौभाग्य मुझे भी मिला। मुझे उनसे मिलकर सुखद अनुभूती होती थी। उनके निधन से 3-4 बरस पहले दिल्ली में मेरी उनसे जब अंतिम मुलाक़ात हुई तो दुर्गा जसराज भी वहाँ मौजूद थीं। जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने वी शांताराम जी का भी इंटरव्यू किया हुआ है तो वह बहुत खुश हुए। जो नहीं जानते उन्हें बता दें कि सुप्रसिद्द फ़िल्मकार वी शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम, पंडित जसराज की पत्नी हैं। यानि शांताराम जी ,जसराज जी के ससुर और दुर्गा जसराज के नाना थे।

पंडित जसराज साहब इतनी उपलब्धियों और मान सम्मान पाने के बावजूद अहंकार से कोसों दूर थे। उस दिन भी वह मुझे बेहद शालीनता से मिले। इसलिए उनकी गायकी के साथ उनकी सज्जनता भी हमेशा याद आती है।

 

 

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