Kahani Rashtrapati Bhavan Ki Book Review: राष्ट्रपति भवन पर एक अच्छी पुस्तक ‘कहानी राष्ट्रपति भवन की’

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

हाल ही में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग (Publication Division) ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Droupadi Murmu) के भाषणों और राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) पर दो हिन्दी और दो अँग्रेजी में कुल चार पुस्तकें प्रकाशित की हैं। जिसमें अँग्रेजी में एक कॉफी टेबल बुक-‘राष्ट्रपति भवन- हेरिटेज मीट्स द प्रेजेंट’ (Rashtrapati Bhavan- Heritage Meets The Present) की भव्यता देखते ही बनती है। इसका खूबसूरत संपादन नविका गुप्ता (Navika Gupta) और आशीष उपेंद्र मेहता (Ashish Upendra Mehta) ने किया है।

लेकिन आज मैं यहाँ बात करना चाहूँगा पुस्तक ‘कहानी राष्ट्रपति भवन की’ (Kahani Rashtrapati Bhavan Ki)। इस पुस्तक को विशेषकर बच्चों के लिए बनाया गया है। इसलिए इसमें संक्षिप्त और सरल शब्दों में अधिकतर बातें कही गयी हैं।

‘कहानी राष्ट्रपति भवन की’ पुस्तक में तीन अध्याय हैं

इस पुस्तक में तीन अध्याय हैं। पहले अध्याय ‘हमारे राष्ट्रपति’ में वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Droupadi Murmu) की जीवन गाथा है। जिसमें उनके प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा से लेकर उनके करियर को बताया गया है। सन 1979 में ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में नौकरी से शुरुआत कर, वह शिक्षक, विधान सभा सदस्य, राज्य में मंत्री होते हुए कैसे झारखंड की राज्यपाल बनीं।

राजनीति में आने के बाद 22 साल में पहुंची देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर

यह बहुत ही दिलचस्प और प्रेरणा दायक है कि सन 2000 में ओडिशा के रायरंगपुर से विधायक के रूप में अपना राजनैतिक जीवन शुरू करने वाली द्रौपदी मुर्मु (Droupadi Murmu) मात्र 15 वर्ष बाद झारखंड की राज्यपाल (Jharkhand Governor) और 22 साल बाद देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति (President of India) पद पर आसीन हो गईं। पुस्तक में राष्ट्रपति के बचपन से अब तक के कई अनुपम चित्र भी हैं। साथ ही उनके सामाजिक योगदान, व्यक्तिगत जीवन, बच्चों से उनके लगाव और उनकी विदेश यात्राओं आदि के बारे में भी चर्चा है।

दूसरे अध्याय में राष्ट्रपति भवन के इतिहास को लेकर है रोचक जानकारी

इसके बाद पुस्तक का दूसरा अध्याय है-‘राष्ट्रपति भवन के मुख्य आकर्षण’। इस अध्याय में राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) का इतिहास है। जिसमें कई रोचक जानकारी हैं। जैसे अंग्रेजों ने देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली करने के निर्णय पर,यह वायसराय हाउस 140  करोड़ की लागत से 17 साल में बना। सन 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद जब भारत में लोकतंत्र स्थापित हुआ तब वायसराय हाउस (Viceroy House) का नाम राष्ट्रपति भवन Rashtrapati Bhavan) कर दिया गया।

इस अध्याय में राष्ट्रपति सचिवालय, दुर्लभ पुस्तकों की अमूल्य विरासत, प्रणब मुखर्जी पब्लिक लाइब्रेरी, जयपुर स्तम्भ, अमृत उद्यान, संगीतमय उद्यान के साथ हरियाली और पक्षियों से भरपूर वातावरण का भी सुंदर चित्रों के साथ समावेश है।

तीसरे अध्याय में संग्रहालय में मौजूद अहम वस्तुओं की जानकारी

जबकि तीसरे अध्याय-‘राष्ट्रपति भवन संग्रहालय परिसर’ में राष्ट्रपति संग्रहालय में रखी गयी अहम वस्तुओं की जानकारी है। जिसमें पूर्व राष्ट्रपतियों के निजी सामान, विदेश से मिले उपहारों के साथ स्वतंत्र ता संग्राम की झलकियाँ और राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) की वास्तुकला, खानपान की दुनिया और सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों तक और भी कुछ जानकारियाँ हैं।

पुस्तक यह भी बताती है कि 23 हज़ार श्रमिकों द्वारा बनाए गए इस भवन निर्माण का जिम्मा किन लोगों को दिया गया। हालांकि ‘कहानी राष्ट्रपति भवन की’ में एक बात का अभाव है। वह यह कि इसमें यह नहीं बताया गया कि ‘वायसराय हाउस’ (Viceroy’s House) बनकर किस तिथि को तैयार हुआ या वायसराय ने इसे अपना आवास किस तिथि से बनाया।

अन्यथा ‘कहानी राष्ट्रपति भवन की’ (Kahani Rashtrapati Bhavan Ki Book) पुस्तक पठनीय होने के साथ दिलचस्प और संग्रहणीय भी है। अच्छी बात यह भी है कि 82 पृष्ठ की इस बड़े आकार की पुस्तक की कीमत भी मात्र 160 रुपए है। इस पुस्तक का कुशल संपादन आभा गौड़ (Abha Gaur) और ऋतुश्री (Ritushri) ने किया है। यह पुस्तक बाल पाठकों के साथ अन्य के लिए भी उपयोगी रहेगी।

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