Doordarshan 65 Years: दिन पर दिन दर्शकों से दूर होता दूरदर्शन, देश में टीवी पर पत्रकारिता शुरू करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक प्रदीप सरदाना का विशेष आकलन

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

दूरदर्शन (Doordarshan) 65 बरस का हो गया। भारत में 15 सितंबर 1959 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने दूरदर्शन (Doordarshan) के माध्यम से देश में टेलीविज़न युग की शुरुआत की थी। लेकिन तब किसी ने कल्पना नहीं की थी यह दूरदर्शन (Doordarshan) कुछ कमाल कर सकेगा। लेकिन 1984 के बाद दूरदर्शन (Doordarshan) ने ‘हमलोग’ सीरियल के प्रसारण के बाद धमाल ही कर दिया। दूरदर्शन (Doordarshan) ने ऐसी ऊंची उड़ान भरी कि यह घर घर का हिस्सा बन गया।

इसके बाद के दस बरस तो दूरदर्शन (Doordarshan) के स्वर्ण काल बन गए। बुनियाद (Buniyaad), रामायण (Ramayan), महाभारत (Mahabharat) यह जो है जिंदगी, कथा सागर, वागले की दुनिया,खानदान,करमचंद, नुक्कड़,उड़ान,रजनी और चुनौती जैसे बहुत से धारावाहिकों ने लोगों की ज़िंदगी बदल दी। ये सीरियल शाम को,रात को आते लेकिन अगले कई दिनों तक इनकी चर्चा घर से दफ्तर तक दिन भर होती रहती। लेकिन आज दुख इस बात का है कि यही दूरदर्शन निजी चैनल्स के सामने बुरी तरह पिछड़ गया है। पूर्व में इतनी लोकप्रियता, सफलता पाने के बाद भी दूरदर्शन फिर से नेपथ्य में चला जाएगा,ऐसी कल्पना तो बिल्कुल नहीं थी।

दूरदर्शन को पिछले 45 बरसों से बहुत करीब से देख रहा हूँ

दूरदर्शन (Doordarshan) के इन 65 बरसों के सफर को मैं पिछले करीब 45 बरसों से बहुत करीब से देख रहा हूँ। मुझे प्रसन्नता है कि देश में टीवी पर पत्रकारिता की नियमित शुरुआत सबसे पहले मैंने ही की थी। आज से करीब 40 साल पहले उस दौर की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में मैंने एक आवरण कथा लिखी थी-‘’दूरदर्शन (Doordarshan) दर्शकों से दूर क्यों’। यह देश के किसी भी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित दूरदर्शन (Doordarshan) पर प्रथम आवरण कथा थी। अपनी आवरण कथा को मैंने यह शीर्षक इसलिए दिया कि तब अपने जन्म के करीब 25 बरस बाद भी दूरदर्शन (Doordarshan) दर्शकों से दूर था।

लेकिन कुछ बरस पहले अपने खूबसूरत और दिलों में घर करने वाले कार्यक्रमों की बदौलत,अपनी सुनहरी गाथा लिखने वाला दूरदर्शन (Doordarshan) अब फिर से दर्शकों से दूर हो गया है। इसलिए आज फिर से मुझे अपनी पुरानी लिखी पंक्तियों को दोहरने के लिए विवश होना पड़ा है।

दूरदर्शन कभी देश में लाया टेलीविज़न क्रान्ति लेकिन फिर बुरी तरह लड़खड़ा गया

असल में शुरुआती बरसों में तो दूरदर्शन की कई विवशताएँ थीं। इस पर आधे घंटे का नाम मात्र प्रसारण होता था। पहले इसे स्कूली शिक्षा के लिए स्कूल टेलीविजन के रूप में शुरू किया गया। शुरू में इसका 500 वाट का ट्रांसमीटर दिल्ली के मात्र 25 किमी क्षेत्र में ही प्रसारण करने में सक्षम था। ऐसे में तब दूरदर्शन (Doordarshan) से कोई बड़ी उम्मीद भला कैसे रखी जा सकती थी ! फिर सन 1959 से 1984 तक 25 बरसों तक दूरदर्शन का एक ही चैनल था। लेकिन उसके बाद देश में टेलीविज़न क्रान्ति हो गयी। इसने मनोरंजन और सूचना की नयी परिभाषा लिखने के साथ, हमारी प्राचीन संस्कृति को भी पूरी तरह बदल कर रख दिया। लेकिन भारत में निजी उपग्रह चैनल शुरू होने के बाद दूरदर्शन बुरी तरह लड़खड़ा गया।

हालांकि दूरदर्शन (Doordarshan) ने अपना एक अलग मैट्रो चैनल शुरू करके निजी उपग्रह चैनल्स का मुक़ाबला करने का प्रयास किया। मैट्रो चैनल को शुरू में बड़ी सफलता भी मिली। लेकिन बात दूर तलक नहीं पहुँच सकी। अंततः मैट्रो चैनल बंद करना पड़ा।

आज देश में 900 से अधिक टीवी चैनल्स हैं

इधर आज चाहे देश में कुल मिलाकर 900 से अधिक चैनल्स हैं। जिसमें मनोरंजन के साथ समाचार चैनल्स भी हैं तो संगीत, सिनेमा, खेल स्वास्थ्य, खान पान, फैशन, धार्मिक, आध्यात्मिक और बच्चों के चैनलस भी। फिर विभिन्न भाषाओं और प्रदेशों के भी। लेकिन एक समय था जब अकेले दूरदर्शन (Doordarshan) ने यह सारा ज़िम्मा उठाया हुआ था।

दूरदर्शन का एक ही चैनल समाचारों से लेकर मनोरंजन और शिक्षा तक की सभी कुछ दिखाता था। जिसमें किसानों के लिए भी था बच्चों और छात्रों के लिए भी, नाटक और फ़िल्में भी थीं तो स्वास्थ्य और खान पान की जानकारी के साथ कवि सम्मलेन भी दिखाये जाते थे और नाटक भी। मौसम का हाल होता था और संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम भी। क्रिकेट, फुटबाल सहित विभिन्न मैच का प्रसारण भी होता था तो स्वंत्रता और गणतंत्र दिवस का सीधा प्रसारण भी।

धरती ही नहीं अन्तरिक्ष तक से भी सीधा प्रसारण दिखाया जाता था जब प्रधानमन्त्री के यह पूछने पर कि ऊपर से भारत कैसा दिखता है, तब भारतीय अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दुस्तान हमारा, कहने पर पूरा देश गर्व से रोमांचित हो गया था।

अच्छी तकनीक के बावजूद अच्छे कार्यक्रम नहीं

इधर आज दूरदर्शन (Doordarshan) के चैनल्स और उसकी तकनीक की बात करें तो इस मामले में दूरदर्शन (Doordarshan) ने बहुत अच्छी प्रगति की है। दूरदर्शन के नेटवर्क में अपने कुल 35 चैनल्स हैं। जिनमें 6 राष्ट्रीय और 28 क्षेत्रीय चैनल्स के साथ एक अंतरराष्ट्रीय चैनल भी है। आज दूरदर्शन के पास विश्वस्तरीय तकनीक के साथ अत्याधुनिक आधुनिक कैमरे और स्टूडियो भी हैं।

यूं देश में मोदी सरकार आने के बाद दूरदर्शन (Doordarshan) का प्रभाव भी कई मामलों में बढ़ा है। पहले प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं में उनके साथ निजी समाचार चैनल्स सहित मीडिया का एक बड़ा समूह जाता था। लेकिन अब पीएम के साथ सिर्फ दूरदर्शन (Doordarshan) जाता है। कितने ही बड़े कार्यक्रम ऐसे हैं जहां सिर्फ दूरदर्शन (Doordarshan) के पास ही वहाँ की कवरेज के विशेष अधिकार होते हैं। इससे अन्य निजी समाचार चैनल्स भी कई बार सिर्फ दूरदर्शन (Doordarshan) पर निर्भर होते हैं।

डीडी न्यूज़ अब सरकारी भौंपू नहीं रहा

डीडी न्यूज़ (DD News) के समाचार भी अब पहले की तरह सरकारी भौंपू नहीं होते। दूरदर्शन (Doordarshan) पर जहां विपक्ष के नेताओं का प्रवेश निषेध सा था। आज वहाँ विपक्ष के कितने ही नेता भारत सरकार और पीएम मोदी की जमकर आलोचना कर जाते हैं। लेकिन भारत सरकार, सूचना प्रसारण मंत्रालय और दूरदर्शन (Doordarshan) के शीर्ष अधिकारी विपक्ष के विचारों पर प्रतिबंध नहीं लगाते।

दूरदर्शन के पास अच्छे कार्यक्रमों की बड़ी कमी

दूरदर्शन (Doordarshan) के पास आज यदि कमी है तो अच्छे कार्यक्रमों की। अच्छे कंटेन्ट और अच्छे कार्यक्रमों को लेकर दूरदर्शन (Doordarshan) लगातार मात खा रहा है। यह ठीक है कि दूरदर्शन (Doordarshan) एक लोक प्रसारक है। वह अन्य निजी चैनल्स की तरह मनोरंजन के नाम पर कुछ भी नहीं परोस सकता। उसकी अपनी सीमाएं और मर्यादाएं हैं। लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं कि सीमाओं में रहकर अच्छे, दिलचस्प और मनोरंजन कार्यक्रम नहीं बनाए जा सकते। पहले भी इन्हीं सीमाओं और मर्यादाओं में रहकर दूरदर्शन (Doordarshan) दर्शकों का दिल जीतता था।

शाहरुख खान से लेकर श्रेया घोषाल तक दूरदर्शन ने दिये अनेक कलाकार

दूरदर्शन (Doordarshan) के 31 दिसंबर रात को प्रसारित होने वाले नव वर्ष कार्यक्रम का दर्शक पूरे वर्ष इंतज़ार करते थे। गीत-संगीत पर भी दूरदर्शन (Doordarshan) के ‘आरोही’ सहित कितने ही कार्यक्रम ऐसे आते थे जिसमें पुराने और नए दोनों कलाकार रंग जमा देते थे। यहाँ तक दूरदर्शन (Doordarshan) पर प्रसारित नाटकों और केन्द्रों द्वारा अपने स्टाफ से बनाए धारावाहिकों का भी जवाब नहीं था।

यही कारण रहा कि शाहरुख खान, उर्मिला मतोंदकर, भाग्यश्री, हिमानी शिवपुरी, आलोक नाथ, सतीश शाह, नीना गुप्ता, कविता कृष्णमूर्ति, गुरदास मान और श्रेया घोषाल जैसे अनेक कलाकार दूरदर्शन के ही कारण सुर्खियों में आए।  लेकिन यह तभी तक हुआ जब तक दूरदर्शन (Doordarshan) के सामने कोई और चैनल नहीं था, कोई प्रतियोगिता नहीं थी।

बेहद कमजोर प्रचार तंत्र के कारण भी पिछड़ रहा है दूरदर्शन

यह बात निश्चय ही चौंकाती है कि विश्व के इतने बड़े लोक प्रसारक के पास पिछले करीब 10 बरस से अपना कोई व्यवस्थित जन संपर्क विभाग तक नहीं है। जबकि पहले यहाँ जनसम्पर्क अधिकारी होती थीं । उनका अपना एक विभाग था। जहां से  दूरदर्शन की गतिविधियों, विभिन्न कार्यक्रमों के आमंत्रण और नए शुरू होने आने वाले सीरियल आदि की जानकारी मीडिया को भी भेजी जाती थी। यहाँ तक एक नियमित पुस्तिका निकाल कर आगामी कार्यक्रमों की जानकारी तथा फिक्स पॉइंट चार्ट तक उसमें संकलित होता था।

खाना पूर्ति के लिए एक बेजान सा मीडिया यूनिट अभी भी  चल रहा  है। लेकिन आप स्वयं भी किसी भी नए कार्यक्रम या चल रहे कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी चाहें तो वहाँ से कुछ भी सूचना नहीं मिल सकती। कभी  कभार वहाँ से कोई प्रेस रिलीज जारी होती है तो वह भी अंतिम समय में और आधी अधूरी जानकारी के साथ। कोई उस कार्यक्रम को लेकर कुछ और पूछना चाहे तो कोई व्यवस्था नहीं है। क्योंकि मीडिया यूनिट के किसी व्यक्ति का नाम या मोबाइल नंबर तक का भी उस रिलीज पर कोई उल्लेख नहीं होता। इसलिए  दूरदर्शन के नए कार्यक्रमों की  जानकारी मीडिया या दर्शकों तक पहुँच ही नहीं पाती।

दूसरी ओर निजी चैनल्स प्रचार तंत्र में इतने शक्तिशाली हैं कि अपने लगभग हर नए शो को शुरू करने से पहले वह अपनी पूरी ताकत झौंक देते हैं। पत्रकार सम्मेलन, सेट विजिट और हर दूसरे दिन उस शो से जुड़ी नयी दिलचस्प जानकारी, मेल और व्हाट्स एप पर तो भेजी ही जाती है। साथ ही फोन करके उस पर लिखने की गुजारिश भी नियमित की जाती है। शो को लेकर विज्ञापन आदि भी सभी माध्यमों में जारी किए जाते हैं। तभी निजी चैनल्स के नए शो को लेकर दर्शक अच्छे से जानते हैं।

पिछले दस बरसों में संसाधनों में हुई काफी बढ़ोतरी

हालांकि पिछले दस बरसों में दूरदर्शन (Doordarshan) के संसाधनों में काफी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन वह उसका सदुपयोग नहीं कर पा रहा। आज कोई भी एक सीरियल या शो ऐसा नहीं है जिसने लोकप्रियता के आयाम बनाए हों। आयाम तो दूर दूरदर्शन (Doordarshan) के किसी भी शो की आम दर्शकों में कभी कहीं चर्चा भी नहीं होती।

जबकि ‘स्वराज’ (Swaraj) जैसे कार्यक्रमों पर दूरदर्शन (Doordarshan) ने करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिये। फिर भी यह सीरियल बुरी तरह असफल हो गया। लगता है पुराने ढर्रे में सभी कार्यक्रम अपनी सुस्त और मस्त रफ्तार से चल रहे हैं। किसी शो को सफलता मिले या न मिले, कोई कार्यक्रम अच्छा बने या न बने,किसी को चिंता नहीं। कोई एक सीरियल तो छोड़िए, अपनी वर्षगांठ और नववर्ष तक के विशेष कार्यक्रमों तक पर दूरदर्शन (Doordarshan) सिर्फ खाना पूर्ति कर रहा है। काश दूरदर्शन (Doordarshan) अपना पुराना जज्बा और जुनून वापस ला सके। दूरदर्शन (Doordarshan) के पुराने सुनहरे दिन फिर लौट सकें !

(लेखक भारत में टीवी पत्रकारिता के जनक हैं)

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