बनारस में दिव्य कला मेले के अनुपम रंग, दिव्यांग्जनों के शिल्प कौशल और उत्पादों के बढ़ावा देने के लिए खुले नए द्वार

  • प्रदीप सरदाना

  वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

  संस्थापक संपादक- punarvasonline.com

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में 15 सितंबर को ‘दिव्य कला मेले’ की शुरुआत हुई तो सभी के चेहरे खिल उठे। टाउन हॉल, मैदागिन में आयोजित यह दस दिवसीय कला मेला 24 सितंबर तक, सुबह 10 से रात्रि 10 बजे तक सभी के लिए खुला रहेगा।

इस मेले में जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों सहित कुल 20 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों के 100 दिव्यांग कलाकारों के शिल्प कौशल आदि के कार्यों और उत्पादों की प्रदर्शनी और बिक्री रहेगी।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री ए नारायण स्वामी ने इसका उदघाटन किया। जबकि एनडीएफडीसी के सीएमडी नवीन शाह और ‘दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग’ के डीडीजी किशोर बाबू राव भी इस मौके पर मौजूद थे।

श्री नारायण स्वामी ने इस मौके पर कहा-केंद्र सरकार ने दिव्यांग्जनों के कौशल, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता के  लिए कई योजनाएँ बनाईं हैं। जिससे दिव्यांगों के शिल्प कौशल और उनके उत्पादों को बढ़ावा मिल सके। इधर हमने दिव्यांगजन की श्रेणियों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया है। साथ दिव्यांगों के लिए आरक्षण भी अब 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत और सरकारी शिक्षण संस्थाओं का आरक्षण भी 3 से 5 प्रतिशत कर दिया है।

मेलों की कड़ी में सातवां मेला, बनारस में पहला 

दिव्यांग कलाकारों की कला और उत्पादों को प्रोत्साहन और उन्हें आत्मनिर्भरता व आर्थिक शक्ति देने के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय ने इस कला मेले की पहली शुरुआत पिछले बरस इंदोर से की थी। उसके बाद भोपाल,दिल्ली और जयपुर जैसे कुल 6 शहरों से होते हुए बनारस में यह सातवाँ कला मेला है। भविषय में देश के अन्य कई शहरों में भी इस ‘दिव्य कला मेले’  का आयोजन किया जाएगा।

मेले में  एक हिंदी संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया।  इस संगोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उमेश कुमार सिंह ने कहा कि आज ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में 700 से अधिक भारतीय शब्द शामिल हो चुके हैं। आज हमें अंग्रेजी के अख़बारों में चटनी, जंगल धरना, घेराव, भेलपुरी, बदमाश, झुग्गी, हवाला, चमचा जैसे शब्द सहज रूप से देखने को मिलते हैं। उन्होंने कहा कि आज 25 लाख भारतीय शब्द हमारे पास हैं, जिनमें से 8 लाख हिंदी शब्द इंटरनेट पर मौजूद हैं यह हिंदी, संस्कृत और भारतीय भाषाओँ की ऊर्जा और क्षमता है। उन्होंने बताया कि बड़ौदा नरेश के  निर्देश से  ‘सयाजी शासन कल्पतरु’ शीर्षक से प्रशासनिक शब्दकोष तैयार किया गया था।

डॉ उमेश ने एनडीएफडीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक की प्रशंसा करते हुए कहा कि उच्च अधिकारी जिस प्रकार से दिव्यांगजन के विकास कार्यक्रमों के साथ भाषा को भी महत्व दे रहे हैं यह वाकई हर्ष का विषय है। भारत में यदि किसी उत्पाद को बेचना है तो हिंदी के बिना उसका विपणन संभव ही नहीं है।

कार्यक्रम में दिल्ली के आयुर्वेदाचार्य डॉ. दयांनंद शर्मा ने मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के कुछ खास उपाय भी बताए। उन्होंने ‘मित भुक’ अर्थात् भूख से कम खाना, ‘हित भुक’ अर्थात हितकारी सात्विक खाना और ‘ऋत भुक’ अर्थात् ऋतु के अनुसार न्यायोपार्जित खाना खाने तथा रोगों से बचने के लिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए आह्वान किया।

इस मौके पर नेशनल दिव्यांगजन फाइनेंस एंड डवल्पमेंट कार्पोरेशन (एनडीएफडीसी) के मुख्य प्रबंधक अरुण कुमार ने बताया कि हम पूरे सितंबर  को राजभाषा माह के रूप में मना रहे हैं। निगम के दिल्ली स्थित कार्यालय के अलावा दिव्य कला मेला, वाराणसी में भी कई हिंदी प्रतियोगिताएं आयोजित की गई हैं।

 

एनडीएफडीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक नवीन शाह ने कहा कि दिव्य कला मेले में सामान खरीदने वालों के साथ अधिक बिक्री करने वाले उत्पादकों को प्रतिदिन तो पुरस्कार दिये ही जाएँगे। समारोह के समापन पर भी श्रेष्ठ प्रदर्शन वालों को पुरस्कृत किया जाएगा।

उधर एनडीएफडीसी के महाप्रबन्धक डॉ. विनीत राणा ने बताया कि एनएचएफडीसी फाउंडेशन ने दिव्यांगजन द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की बाज़ार व्यवस्था के लिए एक वेबसाइट बनाई है जिसके माध्यम से दिव्यांगजन के उत्पादों का प्रदर्शन तथा बिक्री की जा रही है।

निश्चय ही इस प्रकार के मेले जहां दिव्यांग जनों को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभायेंगे। वहाँ उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करके उनमें एक नया विश्वास भी भर देंगे।

 

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