Ramdarash Mishra@100: प्रख्यात साहित्यकार रामदरश मिश्र ने बताया अपनी 100 बरस की लंबी उम्र का राज, कई बड़े सम्मान और उपलब्धियों से परिपूर्ण हैं जीवन, जानें कैसी है उनकी साहित्यिक यात्रा

  • प्रदीप सरदाना 

   वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

प्रख्यात साहित्यकार डॉ रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। आगामी 15 अगस्त को वह अपने जीवन के 100 बरस पूरे कर लेंगे। अच्छी बात यह भी है कि इस उम्र में भी रामदरश जी (Ramdarash Mishra) स्वस्थ हैं, सक्रिय हैं और उन्हें देख लगता नहीं कि वह 100 बरस के हो रहे हैं।

इसी खास मौके को लेकर साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) ने दिल्ली में 10 जुलाई को ‘रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी’ का आयोजन किया। जिसमें रामदरश जी (Ramdarash Mishra) स्वयं तो उपस्थित रहे ही। साथ ही रघुवीर चौधरी, प्रकाश मनु, गिरीश्वर मिश्र, बाल स्वरूप राही, ओम निश्चल, वेद प्रकाश अमिताभ, वेदमित्र शुक्ल, अलका सिन्हा और रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) की पुत्री स्मिता मिश्र (Smita Mishra) ने भी साहित्य के हिमालय पुरुष को लेकर अपने आत्मीय उद्गार प्रस्तुत किए। स्मिता (Smita Mishra) कहती हैं-‘’यह पहली बार हो रहा है जब किसी हिन्दी साहित्यकार की जन्म शताब्दी उनके जीवन काल में ही मनाई जा रही है।‘’

75 वर्ष की साहित्यिक यात्रा में रामदरश मिश्र ने सभी विधाओं में लिखा

रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) जहां एक अच्छे कवि हैं वहाँ अच्छे लेखक भी। अपनी करीब करीब 75 वर्ष की लंबी साहित्यिक यात्रा में मिश्र जी ने गद्य एवं पद्य की सभी विधाओं में लिखा है। या यूं कहें कि खूब लिखा है। सन 1951 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘पथ के गीत’ आया था। उसके बाद रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक ओर वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करते रहे। दूसरी ओर लेखन भी चलता रहा। यहाँ तक 1956 आते आते यह गुजरात के सयाजीराव गायकवाड विश्वविद्यालय, बड़ोदा में प्राध्यापक भी हो गए।

हालांकि 1964 में रामदरश (Ramdarash Mishra) दिल्ली विश्वविद्यालय में आ गए। जहां असंख्य छात्र इनसे पढ़कर देश-विदेश में कितने ही बड़े पदों पर आसीन हो चुके हैं। यूं यह अपनी नौकरी से 1990 में सेवानिवृत हो गए। लेकिन उनका रचनात्मक संसार इसके बाद और भी महक उठा। उनके सृजनात्मक लेखन में उपन्यास, कहानी संग्रह,कविता संग्रह, यात्रावृत, डायरी, ललित निबंध, आलोचना, संस्मरण और साक्षात्कार सभी कुछ है। यहाँ तक उनकी आत्मकथा ‘सहचर है समय’ भी एक अमूल्य साहित्यिक धरोहर है।

देश के बड़े साहित्यिक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं

रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) की बहुत सी कृतियाँ तो देश के बड़े साहित्यिक सम्मानों से पुरस्कृत हो चुकी हैं। इन कृतियों में आम के पत्ते, अपने लोग, कंधे पर सूरज, जहां मैं खड़ा हूँ, रोशनी की पगडंडियाँ, हिन्दी आलोचना का इतिहास, एक वह, मैं तो यहाँ हूँ, जल टूटता हुआ, कितने बजे हैं, आज का हिन्दी साहित्य और हिन्दी उपन्यास एक अंतरयात्रा प्रमुख हैं।

ऐसी ही अपनी कृतियों के लिए रामदरश मिश्र सरस्वती सम्मान, शलाका सम्मान, भारत भारती सम्मान, व्यास सम्मान, विश्व हिन्दी सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान और महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान सहित और भी कई पुरस्कार पा चुके हैं। इन सब पुरस्कारों के साथ मिश्र जी को अपनी कृति ‘आग की हंसी’ के लिए साहित्य अकादेमी का वह बड़ा पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) भी मिला जिसे पाने का सपना हर कोई देखता है।

लंबी उम्र का राज़ बताया

इधर साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) के इस समारोह में रामदरश जी (Ramdarash Mishra) को देखने और सुनने के लिए सभागार खचाखच भरा था। मिश्र जी (Ramdarash Mishra) ने अपने सम्बोधन में बताया- ‘’मुझसे जब कोई मेरी लंबी उम्र का राज़ पूछता है तो मैं उससे कहता हूँ यह भगवान से पूछो, जिसने मुझे बनाया। लेकिन मैं समझता हूँ इसका पहला राज़ यह है कि मैं कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहा। कि यह मिल जाये वह मिल जाये। दूसरा मैंने कभी कोई नशा नहीं किया। बनारस का होते हुए पान तक नहीं खाया। तीसरा मैं बाज़ार से दूर रहा हूँ।‘’ यानि हमेशा घर के बने खाने को ही महत्व दिया है।

अपने जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) यह भी बोले-‘’मुझे अब बहुत सम्मान मिल चुके हैं। अपनी इस यात्रा और सम्मान पाकर मैं अभिभूत हूँ। लेकिन इन सम्मान की शुरुआत जीवन के चौथे चरण में हुई।‘’

कुमुद शर्मा ने अपने सम्बोधन में समां बांध दिया

उधर साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) के सचिव के. श्रीनिवासराव (K Sreenivasarao) भी अपने इस सफल आयोजन से प्रसन्न थे। फिर साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा (Kumud Sharma) ने तो अपने सम्बोधन में समां ही बांध दिया। कुमुद (Kumud Sharma) इतना अच्छा बोलती हैं कि उनके स्वर और शब्द जल्द ही दिलों में घर कर लेते हैं।

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